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विद्यांकुर
जगह देते हैं | सेर भर पानी भाफ होकर उतनी जगह रोकता है कि जितनी में एक हजार सात सौ सेर पानी आता है । इस सव से धूएं की कल में कि जिस को भाफ की कल कहना चाहिये बड़ा ज़ोर होता है हज़ारों घोड़ों का और बड़ी कड़ी ख़बदारी रखने पर भी कभी कभी धात का पीपा जिसमें पानी खोल कर भाफ बनता है फट जाता है | किसी दिन एक साहिब ने इंगलिस्तान में अपनी देगची का जिस में चाय के लिये पानी गर्म हो रहा था ढकना भाफ से फड़फड़ाता देख कर यक़ीन जान लिया कि भाफ में भी ताक़त और जोर है । और फिर ऐसी कल बनायी कि जिस में पानी आग से भाफ वन कर देगची के टकने की तरह एक डंडे को ऊपर नीचे हिलावे जिस से पहिये घूमने लगे अब इसी कल के वसीले से समुद्र में जहाज़ चलते हैं लोहे की सड़क पर गाड़ियां दौड़ती दुन्या के तमाम काम निकलते हैं निदान जिधर सुना इसी का शोर है ॥
हैं
गर्मी की कमी जियादती धर्मामेटर से नापी जाती है । वह एक पोली पतली लंबी गर्दन की गोल शीशी होती है ॥ पहले ऊपर उस का मुंह खुला रखते हैं । और गर्म करके उस में पूरा पारा भर देते हैं । और तब उस का मुंह शोशे से इस तरह बंद करके कि जिस में किसी ढब भीतर हवा न जा सके उस शोशी को बर्फ़ में ठंढी होने देते हैं निदान बर्फ़ के बराबर ठंढी होने पर पारा बिलकुल सिमिट कर शोशी के पेटे
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