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विद्याकुर
न चढ़ने के सबब पत्ते सखकर झड़ जाते है । बसन्त यानी बहार के दिनों में जब फिर सूरज की गरमी पाने लगते हैं। रस ऊपर चढ़ने से उन में कोल कलो फूल निकलकर झटपट हरे भरे दिखलायो देने लगते हैं। कोई काई पेड़ ऐसे भी होते हैं । कि उन का सर्दी कुछ नहीं व्यापती मटा तरोताज़ा बने रहते हैं ॥ पेड़ अक्सर बीज से पैदा होते हैं । कितने ही की कलम लगायी जाती है और बहुतेरों को जड़ जमाते हैं। कोई कोई बीज ऐसा हलका होता है । कि आंधी तूफान से उड़कर सैकड़ों बलकि हज़ारों कास चला जाता है ॥ बीज जव धरती में पड़ता है। उस को एक तरफ़ से जड़ और दूसरी तरफ़ से पत्ता यानी अंखुवा निकलता है ॥ देखा उस मालिक पैदा करने वाले ने इस का भी कैसा सुभाव बनाया है । कि जड़ सदा नीचे और पत्ता सदा ऊपर रहा करता है। अगर ऐसा न होता और एक एक बीज उस का रुख देखकर बोना पड़ता। काहे को आदमी इतनी खेती बारो कर सकता ।
किसी किसी पेड़ के फल गदेटार होते हैं और उसके भीतर बीज रहते हैं। जेसे सेव नाशपाती अमरूद नारंगी उनके गूदे को लोग खाते हैं। किसी किसी पेड़ में गूदेदार फल के बदल फलियां लगती हे और उन के भीतर वोज रहते हैं। जैसे मंग मटर मोठ अरहर और उन के बीज ही खाने में आते हैं ॥ बेर छुहारा शफ़ताल ऐसे फलों को गुठली कड़ी और भारी रहती है । कोई कोई फल बड़े मज़ादार और ख शव से भरे हुए और कोई कोई रंगरूप के बहुत अच्छे लेकिन तामोर उनका ज़हर की होती है। कोई कोई फल फन पेड़ काई की तरह ऐसा छोटा होता है कि ख़ानों आंखों से देखने में भी नहीं पाता है। और कोई के फल गज़ भर तया चौड़ा और पेड़ पाने
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