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विधीकुर
लिये किसी दूसरे को चीज़ देखकर जलना डाह खाना लालच करना या उस के लेने पर मन चलाना अच्छी बात नहीं है ।
उस मालिक पैदा करने वाले की पैदा की हुई चीज़ों पर जिसे कोई दूसरा अपने कब्ज़े में नहीं कर सकता जैसे आसमान की हवा सूरज की धूप दय का पानी ज़मीन को मिट्टी सब का बराबर हक और दावा पहुंचता है। बाकी आ दमी को इतियाजें दूर करने को जो कुछ चाहिये मिह्नत हो से या मिह्नत का बदला देने से मिल सकता है ॥
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निदान आदमी खाने पीने पहनने रहने को को कुछ पैदा करने के लिये मिहनत करता है उसी को रोजगार और उद्यम कहते हैं । जो लोग कुछ रोजगार और उद्यम नहीं करते पहला जमा किया हुआ खाते पोते और चैन उड़ाते हैं आखिर एक दिन मुनिस धनहीन कौड़ी के तीन तीन हो कर भूखों मरते और पेट के लिये बेग़ग्त बनकर दर दर भीख मांगते फिरते हैं। बच्चे मिहनत नहीं कर सकते इसी लिये उन को उन के मा बाप खिलाते पिलाते पहनाते उढ़ाते हैं और जब बी मा बाप बुड्ढे होकर कुछ काम काज नहीं कर सकते ते। उन के जवान लड़के उन की ख़बर लेते हैं | बड़े नालाइक हे वो लड़के जो अपने बुडे मा बाप की अच्छी तरह ख़िदमत नहीं करते हैं। या ख़िदमत के बदले और भी उन को सताते और दुख देते हैं। असल रोज़गार यानी पेशा चार ही क़िस्म का दिखलायी देता है यानी जमींदारी सौदागरी कारीगरी और चाकरी । और दर्जी भी इन का इसी हिसाब से बांधा है यानी पहले दर्जे में सब से बढ़कर किसानी और ज़मींदारी दूसरे में बनज व्यापार और सौदागरी तीसरे में दस्तकारी और कारीगरी ओर बोथे में सब से उतर कर चाकरी यानी नोकरी ॥ देखेो
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