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पहला हिस्सा
मक्खी ज़रूर होती है । जहां वह जाकर बैठती है उसी जगह नये छत्ते की नीव पड़ती है ॥
शिमला की तरफ पहाड़ी लोग अपने घर की दीवारों में इस ढब खिड़कियां लगा देते हैं । कि जिन के किवाड़ भीतर की तरफ खुलें और बाहर की तरफ उन में एक छेद रखते हैं | जब मक्खियों को छत्ता बनाने की फ़िक्र में उड़ता देखते हैं । सिर पर फूलों की टोकरी में रानी मक्खी को बिठला कर एक खिड़की में ला छोड़ते हैं ॥ सारी मक्खियां अपनी रानी की आवाज़ सुनकर उस छेद की राह भीतर घुस आती हैं। और उसी खिड़की में अपना छत्ता बनाती हैं।
पहाड़ियों को जब शहद दीर होता है भीतर से किवाड़ खालकर ज़रा सा धुवां कर देते हैं । मक्खियां सब उस छेद की राह बाहर निकल जाती हैं ये मन मानता शहद अपने कटोरों में भर लेते हैं ॥ जिस दम धुवां हटा कर किवाड़ वंद कर देते हैं मक्खियां उस छेद को राह फिर खिड़की में आने लगती हैं । और अपने छत्ते को शहद से भरती हैं ॥ ___ अंडे से पर निकलने तक किसी किसी जानवर को पांच पांच बरस लग जाते हैं। कभी किसी पत्ते के पीछे जो नर्म नर्म नन्हे नन्हे अंडे दिखलाई देते हैं देखते रहो तो देखोगे कि वही कुछ दिन में एक मुंह बारह आंख सोलह पांव वाले लंबे लंबे कोड़े होकर रेंगने लगते हैं। और फिर कुछ दिनों में उन पर खोल चढ़कर महीनों तक एक ही जगह मुदीर से पड़े रहते हैं। और तब वह उन खालों में से दो
आंख और छ पांध वाली निहायत सुंदर सुडोल परों के साथ तिलियां बनकर निकलते हैं | अमरिका में दो दो फट
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