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विचारपोथी
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४८१ पिछले गुण-दोषोंके स्मरणसे आत्माका अपमान न हो, इसलिए ईश्वरने पूर्वजन्मके विस्मरणकी योजना की है।
४८२ संसारकी समुद्रसे उपमा दी जाती है। समुद्रमें गिरे हुए मनुष्यको जिस प्रकार आगामी क्षणकी राह देखे बिना वर्तमान क्षणमें ही तैरना चाहिए, उसी तरह संसार मेंसे छूटनेका प्रयास भी वर्तमान क्षणमें ही करना चाहिए ।
४८३ कर्म, याने प्रत्यक्ष सेवा । भक्ति याने सेवाभाव ।
४८४ मुरलीकी ध्वनि मुझे कृष्णस्मरणसे समाधिस्थ करा सकती है। परन्तु
(१) अंधेरी रात हो।
(२) कौन बजाता है, यह मालूम न हो। . (३) ध्वनि दूरसे आती हो। इसका कारण है अव्यक्त की सामर्थ्य !
४८५ मनमें वासना उदय होनेपर भी तन्मूलक बाह्य कर्म यदि निश्चयपूर्वक टाला जाय, तो वासना जोर नहीं पकड़ेगी।
४८६
वैराग्यकी विवेकयुक्तता ही वैराग्यकी दृढ़ता ।
४८७ समुद्रका दृश्य आनन्दमय है । लेकिन किनारेपरसे देखनेवालेके लिए , भीतर डूबनेवालेके लिए नहीं।
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पहाड़पर जितना ऊंचा चढ़ें, उतना ही दृश्य अधिक भव्य
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