SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी कमरोंमें हवा चाहिए। उसी प्रकार धर्म कोई अलग विषय नहीं है । सभी व्यवहारोंमें धर्म चाहिए। ३८४ पौधा जमीनमें लगानेपर उसे जमीनमेंसे पोषण मिलता है, उसी प्रकार चित्त आत्मामें गड़ा देनेपर उसे आत्मामेंसे पोषण मिलता है। ३८५ स्वधर्म निश्चित करना नहीं पड़ता; क्योंकि हम कुछ अाकाशसे अचानक टपके हुए नहीं हैं। हमारे पीछे प्रवाह है। स्वधर्म इस प्रवाहसे निर्धारित होता है। ३८६ 'भूतको भागवतका आधार' मिल सकता है, इसमें भागवतका भी दोष है ही। ३८७ सारे संसारकी एकता करनेकी कल्पनाका शोध करना आसान है। परन्तु स्वयं अपने मनका क्रोध जीतना मुश्किल है। ३८८ 'राधा' माने निष्काम आराधना । ३८६ जहां पावित्र्य, वहां सौंदर्य । जहां सौंदर्य, वहां काव्य । ३६० 'धर्मादर्थश्च कामश्च' तंग आये हुए व्यासका वचन है। वे कहना चाहते हैं 'धर्मान्मोक्षः।। आत्मशक्तिकी इयत्तापर ईश्वरशक्तिकी इयत्ता निर्भर है। 'पर' माने 'दूसरा', और 'पर' माने 'श्रेष्ठ'। दूसरेको अपनेसे श्रेष्ठ मानकर चलें, यह साधककी मनोभूमिका है। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy