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विचारपोथी इन पांच बातोंका त्याग करनेका नाम संन्यास है। वही योग है।
१७० __ आहार-विधान : (१) यज्ञ-शेष (२) सात्त्विक, (३) परिमित (४) अस्वादवृत्तिसे (५) भगवानको अर्पण करके, खायं।
१७१
कर्म छोड़ना असंभव हैं, क्योंकि छोड़ना भी तो कर्म है।
१७२
'संन्यास लेने का कोई अर्थ ही नहीं होता; क्योंकि संन्यासका अर्थ ही 'न लेना' है।
सत्कर्मका आचरण करके उसमेंसे फल निकालनेका यत्न करना गंगामें डुबकी लगाकर गाद ऊपर उठानेके बराबर है।
१७४ । 'पुढे' 'मागें' (आगे-पीछे) मराठी भाषा में ये अव्यय दिग्दर्शक होते हुए भी कालदर्शक हैं । इन अव्ययोंसे समानार्थक अन्य किसी भी भाषाके अव्यय इसी तरह उभयदर्शक हैं। इससे मनुष्यके मनका झुकाव सहज प्रेरणासे दिक् और काल एकरूप माननेकी ओर प्रतीत होता है।
१७५
'जगत्के पहले क्या था ?' तेरे इस प्रश्नका अभाव था।
१७६ एक रज्जु-सर्पसे डरकर भागता है, दूसरा रज्जु-सर्पकी पिटाई करता है ; मतलब एक ही है।
१७७ संसारमें यदि भगवान् न मिलते हों तो उनके बाहर मिलनेकी प्राशा ही बेकार है।
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