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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९४) यांते ब्रह्मा क्याजड है किंतु जडनही बडा वतुर है अन्यथा जडमानो तो तद्विरचित गोपीयों तो महां जडहोनी चाहीये. ॥३॥ तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहं। श्रवणमंगलं श्रीमदाततं भुवि गृणंति ते भूरिदाजनाः ___अर्थः-हे प्रभो आपकी कथारूप अमृतजो है सो संसारी जीव जे तीन तापोंसे तप्ते है तिनोके तो जीवनका कारण है तथा कलिके पापनाशक है तथा श्रवणको महदानंदका कारण है परम पवित्र मदके करता है जिससे संसार भूलजाता है एसे रसिककवि जनोंने वर्णन कीया है ॥ ४ ॥ ॥विरचिताभयं वृष्णिधूर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् करसरोरुहं कांतकामदं शिरास देहिनः श्रीकरग्रहं ॥ ___ अर्थः--हे यदुकुलसेतो जे आपके हस्तकमल श्रीलक्ष्मीके कर कमलको ग्रहणकरणे हारे है तथा सर्वकामनावोंकों पूर्ण कर्ता है, तथा संसारसे भयातुर होय करके आपकी शरणागतोंको अभय प्रदाता है हे कृपालो सो करकमल अभयकर्ता हमारे मस्तकपर धारो. ॥ ५॥ ॥विषजलाप्यायायालराक्षसा द्वर्षमारुता द्वैद्युतानलात्। वृषमयात्मजाद्वि श्वतोभया दृषभते वयं रक्षिता मुहुः॥ ___ अर्थ:-हे दयालो हम ब्रजवासीयोंकों जो विषमिश्रित जमुनाजलके पानसे मृतकभये तिस संकटसे तथा अजगरके मुखसें तथा राक्षसोंसे वर्षासें प्रबल पवनसें विजलीपातसें अनिसें वृषभासुरसें जबीजबी संकट भया तवीतवी संपूर्ण संकटोंसे आपने हमारी रक्षा ही करी है ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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