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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) ६ ॥ तापसी बोली हे पुत्र सो परमात्म पद सद्गुरुको सेवा विना तथा ईश्वराराधनसे विना सहस्त्रवार स्वयं शास्त्रोका अवलोकन करकेभी मोहही. को प्राप्त होता है अब तुम सावधान मनसे श्रवण करो जबतक यह परोक्षज्ञानी होता है तबतक मुक्तिको नही प्राप्तहोता जैसे परोक्ष निधि अपने ग्रहमे होवे तोपर सुखको प्राप्त करती नही न दारिद्रको हरती है जैसे आलसी मूढ अपनी ग्रीवामे हार है यह श्रवण करकेभी जबतक देखे नही तबतक सुखी नही होता तैसे सद्गुरुमुखसे तत्वमसि श्रवणकरकेभी जबतक त्रय शरीर त्यागकरके निर्विकल्पपदमे स्थिरताको नही पावता तबतक स्वात्माको अपरोक्ष नही जानता तथा मुक्तभी नही होता सुखपातिकीतो आशाही कहां ॥ ७॥ अब प्रसंगप्राप्त जो स्वात्मस्वरूप है तिसकोभी सुनो हे ऋषे जैसे स्वयंप्रकाशमान जे सूर्याग्निचंद्रतारादिक है ते संपूर्ण जगत्को प्रकाश करतेहूएभी तिस जडदृश्यकरके स्वयं न प्रकाशको प्रातहएभी क्या ते सूर्यादिकनही, वा स्वयंप्रकाशमान नही है एसे विनामूढसे दूसरा विवेकी कोई कह सकता है. तैसेही स्वगत सजातीय विजातीय भेद शून्य तथा देशकाल वस्तुके परिच्छेदसें शून्य और For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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