________________ SamaARDAR R वे-च-वर्ततेऽत्रपरंपरयोक्तया // 47 // तदंशाअखिलादेवाःसकामाआश्रयंतितान् // तत्तदातितद्वारातेभ्योमाहात्म्यबद्ध // 48 // यस्तुसम्यग्विजानीयात्ससंसाराद्विमुच्यते // सर्वात्मनाभजेद्योऽस्यनकिचिदपिदुर्लभं // 49 // गर्जेवनान्मातृदु ग्वादिनाचोपकतंबहु // येनेशःसदयां सोधिहरिःकस्मान्नसेव्यते // 50 // सचस्वल्पेनसंतुष्येत्स्वस्यापिस्यात्सुखंयतः॥ऐ हिकामुष्मिकंमोक्षःसुलभोयदिबांच्यते // 51 // यततेमनुजालोकेराज्ञोऽपिहिसमागमे / समागमेऽखिलेशस्ययतितव्यं कतोनवा / / 52 // समागमोऽस्यज्ञानेनतज्ज्ञानंवेदशास्त्रतः / / समीपस्थगिराराज्ञोपिप्रकृत्त्यादिबुध्यते // 53 // बेदस्यदु। विबोधत्वाल्लोकानुग्रहकारिभिः // ईश्वरानुज्ञयोक्तानिसच्छास्त्राणिमुनीश्वरैः // 54 // वेदार्थएवबोधार्थसच्छास्त्रेषुविवि च्यते // मंतव्यासावधानैर्वाग्वेदशास्त्रमयीशितुः / / 55 // ऋतेगुरुंतयोरोमनना)नबुध्यते // परंपराप्राप्तविद्योऽतःकश्चि सद्गुरुर्गतिः // 56 // वेदज्ञानाद्गुरुप्राप्तादुपदेशपुरःसरात् // केवलाद्वोपदेशाच्चेद्भजेत्तुष्येत्सनान्यथा // 57|| शीघ्रतद्दर्शका / प्राप्यमहामंत्रान्सतोगुरोः // वेदार्थथपरिश्राम्यच्छन्त्यासक्तोहरिभजेत् / / 58 // गुर्वाज्ञयासानुरागंसश्रद्धपुरुषोत्तमं // द्धभावोजेन्नित्यंयथाशक्त्युपचारतः // 59 // लोकेपिशरणायातान्सर्वस्व विनिवेदकान् / यदितुच्छोपिबलवान्कथंचि / दपिनत्यजेत् / / 60 // तर्हियःसद्गुरुद्वारातमेकंशरणंव्रजेत् // सर्वसमर्पयेत्तस्मैकथंत्यक्ष्यतितंप्रभुः // 61 // योगिनामपिदु / दशःसाक्षाद्यावन्नदृश्यते // शुद्धरूपादिबुत्ध्यर्थंतावत्तपतिमार्चनं // 62 // तत्राविश्यस्थितोमंत्रवशोगृह्णातिसोपितं // तानांत्वथतत्रैवसाक्षादनुभवोऽखिलः // 63 // गोपीचंदनमुद्राभिस्तुलसीमालयागले // गुरूपदिष्टाःशुद्धोर्ध्वपुंड्रास्तस्या /