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________________ हिप्रतीयते ॥कामलोपहिताक्षस्यशंखेपीतत्ववन्मषा // 31 // उपाधेःसाधन शेयथावस्थितमीक्ष्यते॥ब्रह्मत्वंकीडनार्थ त्वंतथाऽविद्यानिवर्नने // 32 // भागवतायाभसाप्रचलतातरवोऽपिचलाइव // चक्षुषाधाम्यमाणेनदृश्यतेचलतीवभूः // 33 // देहादीनांविरागार्थसदृष्टांतमसत्यता॥ संसारमेवतन्निष्ठमभिप्रेत्यकताक्कचित् // 34 // विप्रोऽषिमाययास्वमेरा जाहमितिमन्यते // तत्तदेहगतोनवंब्रह्मांशत्वंस्मरत्यसौ॥३५॥ (स्कंध१०) स्वमेयथापश्यतिदेहमीदृशंमनोरथेनाभि निविष्टचतनः। दृष्टश्रुताभ्यांमनसानुचितयन्प्रपद्यतेतत्किमपिसपस्मृतिः॥ 36 // इत्यहंभावमापन्नोदेहेमिथ्यावियो गिनि // अवशःकाय्यतेसर्वमीश्वरेणविमूढधीः // 37 // देहात्मभावोदेहेनेशेच्छयाकतकर्मसु // अहंकारविमूहात्माका साहमितिमन्यते // 38 // वस्तुतस्त्वीश्वरेणेहतत्तद्वारेच्छयाऽखिलं // कार्य्यतेक्रीडयातत्राहंकर्तेतिमतिर्मषा // 39 // फार लसाधनयोःप्रोक्तःकर्ताकारयिताहरिः॥ अहंसर्वस्यप्राबोमत्तःसर्वप्रवर्तते // ४०॥भागवायथादारुमयीयोषायथा / यंत्रमयोमृगः॥ एवंभूतानिभगवन्नीशतंत्राणिविद्धिोः // 11 // यथामरिकादृष्ट्याप्राम्यतीवमहीयते // चित्तेकती / / रितत्रामाकर्त्तवाहंधियास्मृतः॥४२॥ उद्दिश्यसंसृतिपदमहंताममतेअपि ॥सर्वत्रतनिरत्त्यैवमुक्तिनैवान्यथोच्यते // 43 // (स्कंध 7) एतहारोहिसंसारोगुणकर्मनिबंधनः॥ अज्ञानमूलोऽपार्थोऽपिपुंसःखमइवेयते // 44 // (स्कंधा १२)तएतदधिगच्छंतिविष्णोर्यत्परमंपदं॥ अहंममेतिदौराम्यनयेषांदेहगेहयोः॥ 45 ॥इत्यादिवचनस्तादधाप्रत्य रोगविशेषः
SR No.020884
Book TitleVedant Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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