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पारिभाषिकः ।
भार्या के साथ राजन् शब्द सापेक्ष विशेषण और देवदत्त विशेषण के साथ पुरुष | सापेक्ष है इसलिये राजन और पुरुष दोनों के परस्पर असमर्थ होने से समास | नहीं होता। इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं। १०८॥ ... (परोयात्, अतीयात् ) यहां परि-इयात् । दो इकार को दीर्घ एकारादेश हुआ है सो जो अन्तादिवत् मानें तो ( एतेलिङि ) सूत्र से उपसगों से परे इण् धातु को अस्व प्राप्त है इसलिये यह परिभाषा है।
१०९-उभयत आश्रयेनान्तादिवत् ॥ अ०६।१ । ८५॥ ___ पूर्व पर के स्थान में जो एकादेश हुआ हो वह पूर्व पर दोनोंके आश्रयकार्यको प्राप्ति में अन्तादिवत् न हो इस से ( परीयात्, अतीयात् ) आदि में ह्रस्व नहीं होता । इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं । १०८॥
जो टित, कित्, मित् आगम होते हैं उन में किसी टकारादि अनुबन्ध से कोई उदात्तादि विशेष स्वर का विधान नहीं किया है वहां क्या वर होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है ।
११०-भागमा अनुदात्ता भवन्ति ॥ ०३।१।३॥ टित आदि आगम अनुदात्त होते हैं । यद्यपि यह बात है कि अर्थवत आगम इस परिभाषा के अनुकूल जो प्रत्यय वा प्रकृति का स्वर है वही आगम का भी हो तो एक पद में दो स्वर नहीं रहते इसलिये ( भविता) इत्यादि में आगम भी अनुदात्त विधान किये हैं इस में ज्ञापक यह है कि (यासुट परस्मैपदेषदा.) न्स सूत्र में उदातादि करने का यही प्रयोजन है कि आगम सब अनुदात्त होते हैं बस से उदात्त प्राप्त नहीं था और जो प्रत्यय का आद्यदाप्त स्वर होता है वह आगम को नहीं प्राप्त था इसलिये उदात्त कहा इत्यादि । ११०॥
गुप,तिन, कित्,मान आदि धातुओंसे स्वार्थ में सन् प्रत्यय होता है उस सन के नित्य होने से प्रथम गण में शुद्ध प्रयोग नहीं होता तो यह सन्देह होताहै कि दून से आत्मनेपद हो वा परस्मैपद हो जो सन्नन्त से पहिले कोई पद विधान होता हो वह (पूर्ववत्मनः) इस सूत्र से सनन्त से भी होजाता सो तो नहीं होता और सन्नन्तों में कोई विशेष अनुबन्ध भी नहीं है इसलिये यह परिभाषा है । १११-अवयवे कृतं लिङ्गतस्य समुदायस्य विशेषकं भवति यं समुदायं सोऽवयवो न व्यभिचरति ॥ ०३।१।५॥
अवयव में किया हुआ चिन्ह उस समुदाय का विशेषक होता है कि जिस को वह अवयव फिर न छोड़ देवे । इस से यह पाया कि जिन गुप आदि धातों में
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