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॥ पारिभाषिकः ।
सिद्ध कर लेवे । इसी प्रकार शास्त्रों में भी जिस का निषेध किया हो उसके सदृश दूसरे का विधान करना चाहिये । यहां जो विप्रत्ययान्त से अन्य भशादिशब्दों से क्या प्रत्यय विधान किया है वह विप्रत्ययान्त के तुल्य अर्थ वाले भशादिको से क्या होना चाहिये । चि प्रत्यय का अर्थ अभूततझाव है उसी अर्थ में यह होता है अभशो भयो भवति,भशायते ) इत्यादि ( क्वदिवा भशा भवन्ति) यहां प्रभूततनाव के न होने से (क्यङ) नहीं होता। तथा (दधिकादयति, मधुका दयति ) इत्यादि प्रयोग में (तुक) आगम को अभक्त माने कि न पूर्वान्त और न परादि दोनों से पृथक है तो अतिङ् से परे तिङ् पद को निघात होजाये । सो तक तिड से भिव तिङ के तुल्य धर्मवाला पद नहीं है इस से निघात नहीं पावेगा और निघात होना न्ष्ट है इसलिये (तुक) को प्रभक्त नहीं करना किन्तु पूर्वान्त हो करना चाहिये इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं । ६५ ॥
(उपपदमतिङ) इस सूत्र में अतिङग्रहण का यही प्रयोजन है कि तिङन्त उपपद का समास न होवे सा जो (सुप, सुपा) इन दोनों को अनुप्ति चली
आती है तब तो तिङ उपपद का समास प्रासही नहीं फिर निषेधार्थ करना व्यर्थ हुआ इसलिये ऐसा ज्ञापक होना चाहिये कि असुबन्त के साथ पसुबन्तका भी समास होता है तब तो अतिङ्ग्रहण सार्थक होता है इसलिये यह प० । ६६-गतिकारकोपपदानां कृद्भिःसह समासवचनंप्राकसुबुत्
पत्तेः ॥ अ० ४ । । ४८॥ ___ गति कारक और उपपद जून का कदन्त के साथ सु आदि की उत्पत्ति से पहिले हो समास होजाता है । यहां केवल सुपरहित वदन्त के साथ समास हुआ तो अतिङग्रहण सार्थक होने से स्वार्थ में चरितार्थ होगया । और अन्यत्र फल यह है कि गति, (सांकूटिनम्) यहां जो तड़ितोत्पत्ति से पहिले सम् और कुटिन सुबन्तों का समास करके पीछे तहित उत्पन्न किया चाहें तो तदितोत्पत्ति को विवक्षा में कूटिन शब्द को पृथक् पदसंज्ञा रहने से सम् शब्द को वृद्धि नहीं हो सकती। और जब सुपरहित केवल कूटिन् कृदन्त के साथ समास होता है तब समास समुदाय की एक पदसंज्ञा होकर तचितोत्पत्ति होने से सम को वृद्धि होजाती है। कारक, (वा वस्त्रेण क्रीयते सा वस्त्र क्रीती,अश्वक्रीती) इत्यादि शब्दों में केवल क्रीत कदन्त के साथ वस्त्र आदि शब्दों का समास होकर करण पूर्व कीतान्त प्रातिपदिक से (डीए) प्रत्यय होजाता है । और जो सुबन्त के साथ ही समास नियम रहे तो समास को विवक्षा में हो अन्तरङ्ग होने से
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