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सौवरः ॥
२१ - स्वरितात्संहितायामनुदात्तानाम् ॥ अ० ॥ १ । २ । ३९ ॥ स्वरित से परे संहिता में एक दो और बहुत अनुदान्तों को भी पृथक् २ एकश्रुति स्वर होता है ॥
भा०- एकशेष निर्देशो ऽयम् । अनुदात्तस्य चानुदात्तयो
इचानुदात्तानामिति ॥
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भाष्यकार का अभिप्राय यह है कि जो इस सूत्र में बहुवचनान्त अनुदात्त शब्द पढ़ा है उस में एकशेष समझना चाहिये अर्थात् एक दो और बहुत अनुदातों को भी पृथक् २ कार्य होता है । जैसे । अग्निमो'ड़े पुरोहितम् । यहां 'मौ' स्वरित से परे एक 'डे' अनुदात्त को एक श्रुतिखर हुआ है । एकश्रुति का नियम यही है कि वरित से परे उस पर कोई चिन्ह नहीं होता (होतारं रन॒धात॑मम् ) यहां 'ता' स्वरित से परे दो रेफ अनुदान्त वर्णों को एकश्रुतिस्वर हुआ है तथा । इ॒मं मे' गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्रि । यहां मे स्वरित वर्ण है उससे परे द्रि पर्यंत सब अनुदात्त हैं उन सब को एकश्रुतिखर इस सूत्र से हुआ है । संहिताग्रहण इसलिये हैकि । इमम् । मे । गङ्गे । यमुने । सरस्वति । शु तु द्रि । यहां पृथक् २ पदों का अवसान होने से एकश्रुतिखर न हुआ ॥ २१ ॥
२२- उदात्तस्वरितपरस्य सन्नतरः ॥ भ० ॥ १ । २ । ४० ॥
उदास और स्वरित जिस से परे हों उस अनुदात्त को एकश्रुतिस्वर न हो किन्तु सन्नतर अर्थात् अनुदात्ततर होजावे । पूर्व सूत्र से सामान्य विषय में एकश्रुतिखर प्राप्त है उस का इस सूत्र से विशेष विषय में निषेध किया है जैसे । पूर्वेभऋषिभिः | यहां ऋषिशव्द आयुदान्त के परे भिस् विभक्ति को कति स्वर प्राप्त है सो न हुआ । किन्तु उसको अनुदात्ततर होगया । तथा । मरुतः क' सुविता | यहां के शब्द स्वरित के परे 'त' अनुदात्त को खरित नहीं होता किन्तु अनुदात्ततर होजाता है ॥ २२ ॥
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२३- प्रद्युदात्तश्च ॥ भ० ॥ ३ । १ । २ ॥
धातुओं वा प्रातिपदिकेों से जितने प्रत्यय होते हैं उन सब के लिये यह उत्सर्गसूत्र है कि सब प्रत्यय आद्युदात्त हों । जो एकाचर के हो प्रत्यय हैं वे श्रयन्त वह्नाव से उदात्त होजाते हैं जैसे प्रियः । यहां एकाक्षर
क प्रत्यय किया है ।
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aforan | यहाँ इकवक प्रत्यय आयुदात्त हुआ है । इस के अपवाद विषय में अन्य प्रत्ययस्वर विधायकसूत्र बहुत हैं उन में से थोड़े यहां भी आगे लिखे हैं ॥ २३ ॥
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