SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) वसंतराजशाकुने-चतुर्थो वर्गः । . ग्राम्यो बहिमिगतश्च बाह्यो दिवाचरो निश्यदिवाचरो हि ॥ वृथाऽथ वा स्वस्थितिकालहीनाश्चिरं भवन्भूपतिदेशभीत्यै ॥ २० ॥ कूटपूरकमयूरपुटिन्यः सिंहनादगजवंजुलकाश्च ॥ छिक्करःस कृकवाकुरितीमान् पूर्वतोधिकबलान्कथयंति ॥२१॥ ॥ टीका ॥ चलावलं व्यक्त हंसचारेण बलाबलं पूर्वोक्तमेव ॥१९॥ ग्राम्यो बहिरिति॥ग्रामे भवो ग्राम्यः बहिर्गतः सन्वृथा स्यात् । तथा बाह्यो बहिर्भवः ग्रामगतो वृथा दिवाचरः निशिवृथा अदिवाचरोरात्रिचरः अहि वृथा। अथ वेति पक्षांतरद्योतनार्थः। स्वस्थितिकालहीना इति । यस्य या स्थितिः क्षेत्रं यस्य यः कालः ताभ्यां हीनो रहितः शकुनःविरंचिरकालं यावद्भूपतिदेशभीत्यै भूपतिश्च देशश्च तयोर्भयाय भवेत् । एतेन शकुनस्य वृथात्वं निरस्तम् ॥ २० ।। कूटपूरकेति । इमान्पर्वतः पूर्वस्यां दिशि अधिकघलान् अधिकं बलं येषां तान् तथा कथयंति प्रतिपादयंति बुधा इति शेषः । कानिमानित्यपेक्षायामाह । कूटपूरकेत्यादि कूटपूरकः कडवीवा क ॥ भाषा ॥ धनमें शुभबलवान् है, और अशुभकार्यनमें अशुभवलवान् है, और दिशाबल देखलेनो और कालकरके रात्रि में विचरो करैहै तिनपक्षिनको रात्रिहीमें बल है, और दिवसमें विचरै है 'तिनको दिनमॆही बलरहै है और तिथिनकरके पडवाकू आदिलै तिथी तिनको पूर्णारिक्तादि कर्म करके देखलेनो बल अबल और हंसचार करके बलअबल पहले कमो काकको पैसेंही जान लेनो ॥ १९ ॥ ग्राम्यो बहिरिति ॥ ग्रामको रहवेवालोहै और बाहरगयो घाको शकुनथा, और ग्रामके बाहर वनको रहवेवाली है और ग्राममें आय गयो होय तो वाको शकुन वृथा है, और दिनमें विचरवेवालो है वो रात्रिमें वृथा है और रात्रीमें विचरवे वालोहै वो दिनमें वृथा है, अथवा येही जो अपनी अपनी स्थिति करके हीन होय जाको जो काल है वा कालकरके रहित होय तो चिरकालपर्यंत राजातें भय करावे देशते भय करावे या कहवेमें इन शकुननको वृथापनो मिटगयो ॥ २० ॥ कूटपूरकेति ॥ कूटकूरक कड छी ऐसो प्रसिद्ध मयूर मोर नामकर प्रसिद्ध है और पुटिनी ये औरदेशमें कौडियाल For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy