SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत। च लक्ष्मीनाशो भवेद्धवम् ॥ स्वस्यापमाने संकेशो गो त्रस्त्रीणां च विग्रहः ॥७॥ स्वनमध्ये यस्य पुंसो ह्रियते पादरक्षणम् ॥ पत्नी च म्रियते यस्य स स्यादेहेन पीडितः ॥८॥ स्वप्ने हस्तद्वयच्छेदः यस्य स्यात्स नरो भुवि ॥ मातापितृविहीनः स्याद्वां वृन्दैश्च मुच्यते ॥९॥ दन्तपाते द्रव्यनाशः नासाकर्णप्रकर्त्तने ॥ फलं तदेव व्याख्यातमत्र नास्त्येव संशयः॥ १० ॥ चक्रवातं च यः पश्येदङ्गे वातं च यः स्पृशेत् ॥ शिखा चोत्पाव्यते यस्य स म्रियेताचिरादुवम् ॥११॥ स्वप्नमध्ये यस्य कर्णे गोमीगोधाभुजङ्गमाः॥ प्रविशन्ति पुमान्कर्णरोगेण स विनश्यति ॥ १२ ॥ सूर्याचन्द्रमसोः स्वप्ने ग्रहणं यः प्रपश्यति ॥ पञ्चरात्रेण पञ्चत्वं स प्राप्नोति न संशयः॥ १३॥ नेत्ररोगं दीपनाशं तारापातं तथैव च ॥ स्वप्ने यः पश्यति पुमानगरोगी स जायते ॥१४॥ द्वारस्य परिघस्याथ ग्रहस्योपानहस्तथा ॥ स्वप्ने भग्नं प्रपश्येच्चेत्तस्य गोत्रं प्रणश्यति ॥ १५ ॥ हरिणच्छा गकरभरासभानां च दर्शनम् ॥ स्वप्नमध्येऽनिष्टकरं भवत्यत्र देखे उसके धनका नाश हो अपना अपमान देखे तो क्लेशहोय, गोत्रकी स्त्रियोंसे लड़ाई होय ॥ ७॥ स्वप्नके बीचमें जिस पुरुषका जूता चोरी जाय अथवा स्त्री मरे वह मनुष्य देहसे दुःखित हो ॥६॥ स्वप्नके बीचमें जिस पुरुषके दोनों हाथ कटें, वह पुरुष संसारमें माता पिता रहित हो, अथवा गौओंसे रहितहो ॥ ९॥ दांतगिरेंतो इन्द्रियोंका नाश हो नाकके कानके कटनेपर द्रव्यनाश होय इसमें कोई संशय नहींहै ॥ १० ॥ अङ्गमें जो चक्रवातको देख अथवा पवनका स्पर्श करे वा जिसकी शिखा कोई उखाडे वह जल्दी मरताहै ॥ ११॥ स्वप्नके बीचमें जिसके कानमें गोमी गोय वा सर्प प्रवेश करतेहैं वह पुरुष कानके रोगसे नाशको प्राप्त होताहै ॥ १२ ॥ जो सूर्य चंद्रमाका ग्रहण स्वप्नमें देखताहै वह मनुष्य पांच रात्रिमें मरजाता, इसमें कुछ संशय नहींहै ॥ १३ ॥ जो नेत्र रोगको, दियेके नाशको ( दियागुल ) तारोंके गिरनेको स्वप्नमें देखताहै वह पुरुष अङ्गरोगी होताहै ॥ १४ ॥ जो स्वप्नमें दरखाजेका परिघ ( गदा ) का नक्षत्रका जूतेका टूटना देख उसका गोत्र नष्ट होताहै ॥ १५ ॥ हरिण, बकरी, हाथीका बच्चा गदहा इनका दर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy