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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरते हंसादिकप्रकरणम् । (२३५) ॥ इति सारसः॥ कार्यक्षतिमिगते च ढेके मृत्युः पुरो दक्षिणपृष्ठगे च ॥ रुवन्वियत्स्थः समरे पुरोगो यदीयतंत्रस्य जयेत्स शत्रून्॥१२ ॥इति ढेकः॥ ॥ टीका ॥ सारसाभ्यां युगपद्विरावः कृतःसःअचिरेण स्तोककालेन क्रमतोऽपि यः शब्दः कथितोऽर्थकारी वेदितव्यः क्रौंचद्वयस्यापिअयमेव मार्ग:पंथाज्ञेयःयथासारसबंदस्य शकु नानि तथाक्रौंचद्वयस्येति तात्पर्यार्थः यदि सारसः पथि युद्धं प्रकुर्वाणो दृश्यते तदा तत्र कलहमाख्याति यदुद्दिश्य प्रयाति तदभावेपिच एकोऽपि यदि दृश्यते तदा वियोगं कुर्यात् कार्यहानिश्च स्यात् अभीष्टसमागमाभावश्च ग्रंथांतरोप्येवम् ॥ ११ ॥ ॥ इतिः सारसः ॥ कार्य इति ॥ वामगते टेके कार्यक्षतिर्भवति पुरोदक्षिणपृष्ठगे च मृत्युभवति यदीयतंत्रस्य समरे वियत्स्थः पुरोगो रुवन् भवति स शत्रन् जयेत् ॥ १२ ॥ ॥ इति ठेकः॥ ॥ भाषा॥ सारसको युगल दोनो एकसंगही शब्द करें तो शीवही कमसू अर्थकारी जाननो और कौंचद्वयको भी यही मार्ग है, जैसे सारसके जोडाके शकुन हैं तैसेही कौंचके जोडाको जाननो. जो सारसमार्गमें युद्ध करतो दीखे तो कलह कहै और जाको उद्देशकरके जातो होय ताको अभाव जाननो और जो एकही दीखे तो वाकोभी वियोग करें और कार्यकी हानि करै अभीष्ट समागमको अभाव करै ये ग्रंथांतरको मतहै ॥ ११ ॥ ॥ इति सारसः॥ ॥ कार्य इति ॥ ढेक पक्षी जो वामगति होय तो कार्यक्षति करै और अगाडी जेमन्ने भाऊं पिछाडी गमन करै तो मृत्युकू देवे. और संग्राममें आकाशमें स्थित होय अगाडी आय शब्द करै तो शत्रुनकं जीतले ॥ १२ ॥ ॥ इति ढेकः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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