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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३० ) वसंतराजशाकुने - अष्टमो वर्गः । द्वितीयप्रहरे शांता कन्यालाभविधायिनी || प्रदीप्ता कलहोद्वेगौ ब्रूते शाकुनिका ध्रुवम् ॥ ३३ ॥ तृतीयप्रहरे शांता दुर्गा यच्छति कन्यकाम् ॥ दीता कन्या परिक्लेशं ब्रूते हरदिगाश्रिता॥ ३४ ॥ शांता रोगभयं स्वल्पमीशानी वक्ति पोदकी। दीप्तस्वरा महाव्याधिं चतुर्थ प्रहरे नृणाम् ॥ ३५ ॥ ब्रह्मप्रदेशगा शांता प्रथमप्रहरे नृणाम् ॥ लाभं कुर्यात्प्रदीप्ता च गृहस्य स्वामिनो रुजम् ॥ ३६ ॥ द्वितीयप्रहरे शांता ब्रह्मपुत्री धनप्रदा || प्रदीप्ता च विनाशाय जायते ब्रह्माण स्थिता ॥ ३७ ॥ ॥ टीका ॥ प्रध्वनिना दुर्गा परचक्रसमागमं करोति ॥ ३२ ॥ द्वितीयेति ॥ द्वितीयप्रहरे ईशानदिशि स्थिता शाकुनिका शांता कन्यालाभविधायिनी भवति प्रदीप्ता चेत्कलहोद्वेगौ ध्रुवं बूते ।। ३३ ।। तृतीयेति । तृतीये प्रहरे हरदिगाश्रिता शांता दुर्गा कन्यकां यच्छति प्रदीप्ता सती कन्यायाः परिक्लेशं व्रते ।। ३४ ।। शांतेति । चतुर्थ प्रहरे ईशानी ईशान कोणे स्थिता शांता पोदकी स्वल्पं रोगभयं वक्ति दीप्तस्वरा नृणां महाव्याधिं करोति ॥ ३५ ॥ ब्रह्मेति ॥ प्रथमप्रहरे ब्रह्मप्रदेशगा शांता पोदकी नृणां लाभं कुर्यात् च पुनः प्रदीप्ता दुर्गा गृहस्य स्वामिनो रुजं रोगं करोति ।। ३६ ।। द्वितीयति ॥ द्वितीयप्रहरे ब्रह्मणि आकाशे स्थिता ब्रह्मपुत्री शांता सती धनप्रदाभ ॥ भाषा ॥ प्रहर में ईशान दिशामें पोदकी शांता तो शत्रूनको समागम करै ॥ ३२ ॥ द्वितीयेति || दूसरे होय तो कन्याको लाभ करें, जो प्रदीप्ता होय तो निश्चयही कलह उद्वेग करावे ॥ ३३ ॥ तृतीयेति तीसरे प्रहरमें ईशानदिशा में दुर्गा शांता होय तो कन्या प्राप्त करे और जो दीप्ता होय तो कन्याको क्लेश करै ॥ २४ ॥ शांतति ॥ चौथे प्रहरमें ईशान दिशामें स्थित पोदकी शांता होय तो अल्परोगको भय कहे है. दीप्तस्वरा होय तो मनुष्यनकूं महाव्याधि करे || ३९ ॥ ब्रह्मेति ॥ प्रथम प्रहरमें आकाशमें स्थित पोदकी शांता होय तो लाभ करै. प्रदीप्ताहोय तो गृहके स्वामीकूं रोग करे ॥ ३६ ॥ द्वितीयेति ॥ दूसरे प्रहर में आकाशमें स्थित ब्रह्मपुत्री शांता होय तो धन देवै और प्रदीप्ता होय तो बिनाशके अर्थ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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