________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पोदकरुिते वृष्टिप्रकरणम् ।
( २०३ )
अदक्षिणा या विनिवृत्तिकाले सा संमता प्रावृषि वर्षणार्थम् || प्रदक्षिणं याति तु या निवृत्तौ सा ब्रह्मपुत्री घनविघ्नकर्त्री ॥ ॥ ३४० ॥ विमुच्य शब्दं यदि भूत्रयेऽपि भवेद्विवारा विनिवर्तते तु ॥ तारा तदा स्यात्तपनांशुमाला करालदाहाकलिता धरित्री ॥ ३४१ ॥ संमूत्र्य वांत्वा यदि वा विहंगः स्यादक्षि णो वर्षति तत्रितांतम् ॥ पूर्वोक्तकारी यदि चोद्धृतः स्यात्तद्वारिदो वारि ददाति तुच्छम् ॥ ३४२ ॥ श्यामा सुदेशे कृतमूत्रवतिर्महीयसीं शुष्कतरौ तु तुच्छाम् || पाषाणखंडे सतुषारखंड त्रवीति वृष्टि जलदस्य काले || ३४३ ॥
॥ टीका ॥ अदक्षिणेति ॥ या विनिवृत्तिकाले पोदकी अदक्षिणा वामा स्यात्सा प्रावृषि वर्षणार्थं संमता । तु पुनः या निवृत्तौ प्रदक्षिणं याति सा ब्रह्मपुत्रो घनविनकर्त्री स्यात् ॥ ३४० ॥ विमुच्येति ॥ यदि भूत्रयेऽपि शब्दं विमुच्य वितारा भवेद्यदा पुनः विनिवर्तते तारा स्यात्तदा तपनांशुमालाकरालदाहाकलितेति तपनः सूर्यः तस्य अंशुमाला किरणश्रेणिः तेन यः करालः कठिनो दाहः तापाधिक्यं तेनाकलिता व्याप्ता धरित्री पृथ्वी स्यादित्यर्थः ॥ ३४१ ॥ संमूत्र्येति । यदि विहंगः संमूत्रय वांवा वा प्रदक्षिणः स्यात्तदा नितांतमत्यर्थं वर्षति । यदि पूर्वोक्तकारी उद्धृतः स्यात्तदा वारिदो मेघः तुच्छं वारि ददाति ।। ३४२ || श्यामेति ॥ यदि वर्षाकाले श्यामा सुदेशे कृतमूत्रवातिर्भवति तदा महीयसी वृष्टि ब्रवीति।यदि शुष्कतरौ कृतमूत्रवांतिः स्यात्तदा तुच्छ वृष्टिं ब्रवीति । पाषाणखंडे पुनः सतुषारखंड वृष्टि ब्रवीति ॥ ३४३ ॥
॥ भाषा ॥
क्षिणा करे तो वर्षा व्यतीत हुये पै बहुत वृष्टि होय. और बीचमें अल्पभी वर्षा न होय ॥ ॥ ३३९ ॥ अदक्षिणेति ॥ जो शकुनसूं निवृत्ति कालमें पोदकी वामा होय तो वर्षाकाल में वर्षा बहुत होय और जो निवृत्तिकाल में दक्षिणा होय तो ब्रह्मपुत्री मेघमें विघ्न करनेवाली होय ॥ २४० ॥ विमुच्येति ॥ जो पोदकी तीनों भूमिमें शब्दकरके वामा होय और नि: वृत्तिकालमें तारा होय. तो सूर्यके किरणों की बहुत तापकरके व्याप्त पृथ्वी होय ॥ ३४९ ॥ संमूत्र्येति ॥ जो विहंग मूत्रकरके वा वमनकरके दक्षिण में होय तो अत्यंत वर्षा करे. जो मूत्रकरके वमनकरके उद्धृत होय तो मेघ तुच्छ जल देवें ॥ ३४२ ॥ श्यामेति ॥ जो
For Private And Personal Use Only