________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। आदौ नतिं दर्शयति प्रयाति समुन्नति व्योनि करोति चान्ते।। आसन्नमप्याह तदा वराही दूरेऽल्पमूरीकृतमिष्टमर्थम् ॥ ॥ १८४ ॥ उड्डीयमानोन्नतिमादितो या ततो नतिं दर्शयते कुमारी ॥स्वल्पं चिरं प्राप्यमपीह यत्स्यात्तत्सा प्रयच्छत्यचिरेण भूरि ॥ १८५॥ नीचोचमध्यैर्गमनैः क्रमेण नीचोच्चमध्यानि फलानि देव्याः ॥ प्रदक्षिणायाः कथयंति याने गृहप्रवेशे पुनरुद्धृतायाः॥१८६॥ शिरः कटीजानुसमं. व्रजंती मासायनाब्दैः फलदा क्रमेण ॥ अकल्पिते कालविभाग एवं प्रकल्पिते कल्पित एव मानः ॥ १८७ ॥
. ॥ टीका ॥ आदाविति ॥ आदौ व्योम्नि नतिं दर्शयति परं समुन्नतिं प्रयाति प्रांते च नति करोति तदा वराही देवी ऊरीकृतं स्वीकृतमिष्टमर्थमासनमपि दूरे अल्पमाह १८॥ ॥ उड्डीयमानेति ॥ या उड्डीयमाना आदित उन्नति दर्शयते ततः कुमारी नति दर्शयते सा इह लोके स्वल्पं चिरं प्राप्यं यत्स्यात्तदचिरेण स्तोककालेन भूरि प्रयच्छति ददाति ॥ १८५ ॥ नीच इति ॥ देव्या नीचोच्चमध्यैर्गमनैः क्रमेण नीचोबमध्यानि फलानि स्युः । तत्र प्रदक्षिणायास्तारायाः पूर्वोक्तानि फलानि याने गमने कथयति । उद्धृताया वामायाः पुनः गृहप्रवेशे फलानि प्रतिपादयंतीति तात्पयार्थः ॥ १८६ ॥ शिर इति ॥ शिरकटीजानुसमं व्रजंती कुमारी क्रमेण मासाय
॥ भाषा॥
मंद चले तो बहुत कालमें वा आधेसू भी आधो फल करै ॥ १८३ ।। आदाविति ॥प्रथम आकाशमें नीची दीखे फिर ऊंची दीखै फिर अंतमें नीची दखे तो देवी स्वीकार कियो जो वांछित अर्थ वो निकटमें होनहार होय तोभी वा कार्यकू दूर और अल्प कहनो ॥ १८४ ॥ उड्डीयमानेति ॥ जो प्रथम उडती हुई ऊँची गति दिखावै फिर नीची गति दिखावै तो वो कुमारी अल्प और बहुत कालमें प्राप्त होयबेके योग्य जो वस्तु ताय थोडे कालमें बहुत वस्तु देये ॥ १८५ ॥ नीच इति ॥ पोदकीकी नांची गति मध्यगति उंची गति इन तीनों गतिनकरके तीन प्रकारके नीच ऊंच मध्यफल होयहै तामें प्रदक्षिणा ताराके फल पहले कहें है गमन समयमें तेही फिर उद्धताके फल गृहप्रवेशसमयमें प्रतिपादन करें है ॥ १८६ ॥ शिर इति ॥ जो पोदकी शकुनीके मस्तकके समदेशमें होयकर गमन करै तो
For Private And Personal Use Only