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( १३०) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः।
भयं प्रकंपादतिमात्रमत्र स्वगात्रपीडा स्वजनस्य भीर्वा । उत्पाटनात्पुच्छपतत्रयोश्च बंधुक्षयो वा मरणं भवेद्वा ॥४॥ प्रत्यक्षदेव्या निकटस्थभक्ष्यत्यागाद्भवत्यभ्यवहारहानिः ।।गृहीतभक्ष्यत्यजनेन पुंसां हस्तस्थितस्यापि धनस्य नाशः॥ ॥ ८५ ॥ स्वजातियुद्धे समजातियुद्धं परेण युद्धे परजातियुद्धम् ॥ भंगो भवेत्पूजितपक्षिभंगे जये तदीये विजयो जनस्य ।। ८६॥
॥ टीका ॥
स्कतायां शोकाकुलत्वं स्यात् । मूत्रे पुरीषेवमने च अर्थनाशः स्यात्।।८३॥भयमिति ।। प्रकंपाद्यमतिमात्रं भूयस्तरंभवेत्।स्वगात्रपीडास्वजनस्यभीर्वाभवति।पुच्छपतत्रयो रुत्पाटनाइंधुक्षयो मरणं वाभवेत् ॥८४॥प्रत्यक्षेति ॥ प्रत्यक्षदेव्यानिकटस्थभक्ष्यत्यागात् अभ्यवहारहानिरिति अभ्यवहारोशनंतस्य हानिरभावः भवेत् । गृहीतभक्ष्यत्यजनेन पुंसां हस्तस्थितस्यापि धनस्य नाशः स्यात् ।। ८५॥ स्वजातीति ॥ स्वजातिनाआत्मीयेन समं युद्धेसमजातिभिःसमं युद्धभवति।परेण अन्यजातीये समंयुद्धे परजातिभिः सह युद्धं भवति । पूजितपक्षिभंग इति अधिवासितपक्षिभंगे भंगाप
॥ भाषा॥
और कुटुंघमें घातकर और जो उदास होय तो शोक कर व्याकुल करे और मूत्र कर रही होय वा बीट करती होय वा घमन नाम उलटी करती होय तो अर्थ नाश करें ॥ ८३ ॥ भयभिति । पोदको कांप रही होय तो बहुत भय कर अपने देहमें पीडा करें और स्वजन जननकू भय करे और पूंछ पंख इनकं धरतीमें पटक मारै फड फडावे उखाडे तो बंधुको क्षय अथवा मरण करें ॥ ८४ ॥ प्रत्यक्षेति ॥ और पोदकीके निकटमें भक्षण हैं
और त्याग कर राखो हाय न खाय तो मनुष्य भोजनकी हानि करावे और जो भक्षण ग्रहण कर राख्यो होय फिरवाये ते छूट जाय तो हाथमें आयो यो धननाशक प्राप्त होष ॥ १५॥ स्वजातीति ।। पोदकी अपने समान जातिकरके युद्ध कर रही होय तो मार्गीक भी समान जातिके करके युद्ध कराये और जो परजातिकरके युद्धकर रही होय तो प्राणीकुंभी परजातिकरके युद्ध होय और बैठे बैठे पंख• फटकारण लगे तो भंग नाश करै
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