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नरेंगिते आलोकनप्रकरणम्। (७५) कृष्णांबरा कृष्णविलेपनाढया कृष्णां स्रजं मूनि धारयंती॥ दृष्टा सकोपा यदि कृष्णवर्णा नारी नरैस्तद्विपदो भवंति ॥ ॥६॥ श्वेतांबरा श्वेतविलेपनाढया माल्यं सितं मूर्द्धनि धारयंती ॥ दृष्टा प्रकृष्टा यदि गौरवर्णा नारी नरैः स्यात्तदभीष्टसिद्धिः ॥७॥ धृतातपत्रः शुचिशक्लवासाः पुष्पाचितश्चंदनचर्चितांगः॥ निश्रावयुक्तः कृतभोजनो वा विप्रः पठन्यच्छति सर्वसिद्धिम् ॥ ८॥
॥ टीका ॥ मन्यत्र कन्यागोपूर्णकुंभं दधिमधुकुसुमं पावकं दीप्यमान यानं वा गोपयुक्तं करिनपतिरथः शंखवीणाध्वनिर्वा ॥ उत्क्षिप्ता चैव भूमिर्जलचरमिथुनं सिद्धमन्नं घृतं वा वेश्या स्त्री मद्यमांसं हितमपि वचनं मंगलं प्रस्थितानाम्।।" इति ॥ ५ ॥ कृष्णांवरेति ॥ नरैर्मानवैः एवंविधा नारी यदि संमुखमभ्येति वा आगच्छंती दृष्टा विलोकिताभवति तदा विपदोभवंतिकीदृशी कृष्णांवरा कृष्गमंचरं वस्त्रं यस्याः सा तथा कृष्णविलेपनाव्या इति कृष्णं विलंपनं तेन आढ्या दिग्धा किं कुर्वन्ती कृष्णां नजं मूर्द्धनि धारयंती कृष्णा इति अशुभाचरणैः कृष्णा शुचिरित्यर्थः । सकोपा इति कोपयुक्ता कृष्णवर्णा इति स्वाभाविककृष्णशरीरवर्णेत्यर्थः ॥ एवंविधैः नरैश्च ताः विपदो भवंतीत्यर्थः ॥ ६ ॥ श्वेतांबरा इति ।। नरैः पुरुषैः एवंविधा नारी दृष्टा विलोकिता संमुखमायांतीति शेषः । तदा अभीष्टसिद्धिः स्यात् । कीदृशी श्वेतांबरा धेतवस्त्रपरिधाना श्वेतविलेपनाढयादिपूर्ववत् । प्रहृष्टेति हर्षोपेता एवंविधैर्नरैश्चाभीसिदिः स्यादित्यर्थः ॥ ७ ॥ धृतातपत्र इति ॥ एवंविधो विप्रः सर्वसिदि य
॥ भाषा ॥ बारेहैं ॥ ५ ॥ कृष्णांवरेति ॥ काले वस्त्र पहरे होय काला विलेपन जाके लगरहा होय कालीमाला मस्तकमें धारण करे होय कोपसहित होय और कृष्णवर्णभी जाको होय ऐसी स्त्री जो सम्मुख आवे तो दीखजाय तो मनुष्यनकू विपदकष्ट निश्चय होय ऐसो पुरुषभी सम्मुख आवतो दीखजाय तो भी कष्ट होय ॥ ६ ॥ श्वेतांवरा इति ॥ श्वेतवस्त्र धारण करे होय श्वेतही विलेपन करे होंय प्रसन्नतायुक्त होय श्वेतमाला मस्तकपै धारण करे गौर वर्ण जाको होय ऐसी स्त्री दीखे और सम्मुख आती होय तो मनुष्यनकू अभीष्टसिद्धि होय और ॥ ७ ॥ धृतेति ॥ छत्र धारण करे होय पवित्र होय श्वेत वस्त्र धारण करे होय पुष्प करके अलंकृतहोय चं.
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