________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संहि. रात्रीसुरासुता॥१४॥ सोमस्यरूपम् ॥सोमस्यरूपङ्कीतस्यपरि // 177 // उत्त्परिषिच्यते॥ अश्विब्भ्योन्दुग्ग्धम्भैषजमिन्द्रायैन्द्रसरख / त्या॥१५॥आसन्दीरूपम् // आसन्दीरूपराजासन्चैबेचैकुम्भी है सुराधानी // अन्तरऽउत्तरवेद्यारुपङ्कारोत्तरोभिषक् // 16 // वेद्या है। वेदिः॥द्यावेदुिल्समाप्प्यतेबर्हिषाबर्हिरिन्द्रियम् // यूपेनयूपऽ / आप्प्यतेप्प्रणीतोऽअग्निरग्निना॥१७॥ हवि नय्यत्॥हुवि॰ है // 177 // नय्यदुश्चिनाग्नौटुंय्यत्सरस्वती॥इन्द्रायेन्द्र सदस्कृतम्पत्नीशा / SCAMERRORMERMARG For Private And Personal