________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir // 157 // // 17 // संहि. खर्गत्वामिश्रादेवेभिराद्धम्॥६५॥प्राचीमनु।प्रदिशम्प्रेहिविद्वा .अ. नग्नेरेग्नेपुरोऽअग्नि वेह // विश्वाऽआशादीद्यानोविभाहयूजन्नो / धेहिद्विपदेचतुष्प्पदे // 66 // पृथिध्याऽअहम्॥पृथिच्याऽअहमुद / न्तरिक्षमारुहमन्तरिक्षा दिवमारुहम्॥ दिवोनाकस्यपृष्ठात्स्वज्यो / तिरगामुहम् // 67 // स्वय॑न्तः॥स्वर्यन्तोनापेक्षन्तऽआद्या रोहन्तिरोदसी।यज्ञंय्येविश्वतोधारसुविद्वासोवितेनिरे॥६॥ अग्नेप्र॥ अग्नेप्प्रेहिप्प्रथमोदेवयुताञ्चक्षुर्दैवानामुतमर्त्यांनाम्॥इय | // 157 // For Private And Personal