________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandi सर्वामृधोबिधूनुते॥ अग्नि सुधस्त्थैमहुतिचक्षुपानिचिकीपते / // 18 // आक्रम्म्यवाजिन्॥ आक्रम्म्यवाजिन्पृथिवीमग्निमिच्छरु / चात्त्वम्॥ भूम्म्यावृत्त्वायनोब्रूहियतऽखनैमतंवयम्॥१९॥ द्यौ / दस्तै / पृष्टम्पृथिवीसुधस्त्थमात्मान्तरिक्षन्समुद्रोयोनिः // वि ख्यायचक्षुपात्त्वमभितिष्ठपृतन्यतः॥२०॥ उत्क्राम। महुतेसौ / भगायास्म्मादास्त्थानाद्रविणोदावोजिन् // यस्यामसुमतौ / / थिध्याऽअग्निङ्खनन्तऽउपस्थैअस्याई॥२१॥उदक्रमीत् // उदक RORSCOACROSSACROCACANCE For Private And Personal