________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥वैशाखमाहात्म्य अध्याय 7 // निषण्णंकुर्यात्पीडांप्राणपर्यंतमेव // 28 // जलंदृष्ट्वाकालकूटप्रकल्पंकुल्यावाया पीसंस्थमप्यंगनूनं // तस्यास्तीरेचागमंदैवयोगाद्वंगायात्राकारणान्मार्गमध्ये॥॥ 29 // दृष्ट्वाऽद्भुतंशल्मलीटक्षमलेकृत्वात्वाभक्षयंतस्वमांसं // क्रोशंतंतंबहुधा शोचमानंक्षुधातृषाव्यथितंकर्मभिःस्वैः // 30 // समहंतुंप्राद्रवत्क्रूरकर्मामत्तेॐ जसानिहतोद्दुवेच // तंचाब्रुवंकृपयाक्लिन्नचित्तोमाभैषीरितिश्लक्ष्णयामेगिरा त्रि च // 31 // कस्त्वंतातब्रूहिसद्योऽत्रहेतुकृच्छादस्मान्मोचयेमाविषीद // इत्यु-15 शक्तोमांप्राहपुत्रत्वजानन्पुरानतेभूवराख्येचग्रामे // 32 // नाम्नामैत्रःसंकृतेर्गोजोऽहंतपोविद्यादानयज्ञादिनिष्ठः // मयाऽधीताध्यापिताःसर्वविद्याःकृतोम 1 छित्त्वा / 2 अधावत् / 3 पलायत / 4 कोमलया / 5 संकटात् / 6 खिन्नो मा भव / More For Private and Personal Use Only