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अपनी आध्यात्मिक एवं भौतिक-समृद्धि के लिए सुप्रसिद्ध और बारहवें तीर्थंकर वासपूज्य की मोक्ष-प्राप्ति-नगरी चम्पापुरी एवं मन्दारगिरि (भागलपुर)- इसी प्रकार सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ की जन्म-स्थली-वाराणसी; श्रेयांसनाथ की जन्मस्थली श्रृंगपुरी (वर्तमानकालीन सारनाथ); तथा चन्द्रप्रभ-स्वामी की जन्म-स्थली चन्द्रपुरी (वाराणसी) जैसे जैन-तीर्थों की यात्रा किये बिना जैन भक्तों की तीर्थ-यात्रा अधूरी ही मानी जाती है।
इसी प्रकार हरियाणा-निवासी महाकवि विबुध श्रीधर (13वीं सदी) की दिल्लीयात्रा, जहाँ उन्होंने (महासार्थवाह-) नट्टल-साहू द्वारा निर्मापित गगनचुम्बी शिखरों वाले विशाल नाभेय-मन्दिर (आदिनाथ-मन्दिर) के दर्शन कर वहीं पर बैठकर उसने अपने अपभ्रंश-भाषात्मक "पासणाहचरिउ" नाम का विस्तृत-ग्रन्थ लिखा था (भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित)। बाद में दुर्भाग्य से कुतुबुद्दीन-ऐबक ने उसी नाभेय-मन्दिर तथा मानस्तम्भ
और अन्य कुछ मन्दिरों को ध्वस्त कर उनकी सामग्रियों से कुतुब-मीनार तथा कुतुब्बुलइस्लाम नाम की मस्जिद का निर्माण करा दिया था।
प्रस्तुत निबन्ध का विषय अद्यावधि उपेक्षित ही बना रहा। भारतीय ज्ञानपीठ ने सम्भवतः प्रथम बार उसे रेखांकित करने के लिए मुझे प्रेरित किया। उसके लिए मैं आभारी
प्रारम्भ में एतद्विषयक सूत्र खोजने में मुझे उसी प्रकार कठिनाई हुई, जिस प्रकार समुद्री-तट की बालू में बिखरे हुए सर्षप-बीजों के खोजने में कठिनाई होती है, किन्तु मुझे लगता है कि मेरा यह परिश्रम सार्थक रहा। उक्त वर्ण्य-विषय के सूत्र निस्सन्देह ही जैनवाङ्मय में प्रचुर मात्रा में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं और उन्हें एक-बद्ध कर उनके विश्लेषणात्मक प्रस्तुतीकरण से एक सरस-रोचक ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है।
92 :: जैनधर्म परिचय
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