________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवगढ़, आबू, ऐहोल, श्रवणबेलगोल, अहार, खजुराहो, जूनागढ़ रणकपुर, दानवुलपडु, कुरिक्यल, धर्मवरम्, हम्पी, अर्काट, गोदापुरम्, कार्कल, ऐलोरा, मूडबिद्री आदि सैकड़ों स्थान हैं, जहाँ जैन अभिलेख उपलब्ध हुए हैं।
मुद्रा के क्षेत्र में पांडव शासकों द्वारा प्रचलित सिक्कों का विशेष योगदान रहा है। उनकी चतुष्कोणीय कांस्य मुद्राओं पर अंकित सूर्य, चन्द्र, कलश, छत्र, मत्स्य, अष्टमंगल, द्रव्य आदि का सुन्दर अंकन हुआ है।
इस प्रकार कला और स्थापत्य के क्षेत्र में जैनधर्म ने प्रारंभ से ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके दर्शन और साहित्य ने भी कला के हर क्षेत्र को विकसित किया है। प्रादेशिक संस्कृतियों के तत्त्वों के साथ लोककथाओं और सांस्कृतिक घटनाओं का अंकन जिस सुन्दरता के साथ जैन कला में हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। वस्तुतः श्रमण
जैन संस्कृति और पुरातत्त्व को समूची जैन परम्परा की आधार भूमि के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। उसके विकासात्मक सोपानों पर आरूढ़ होकर ही हम जैन दर्शन, कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्त्व पर सही ढंग से विचार कर सकेंगे। इससे विविध संस्कृतियों के पारस्परिक आदान-प्रदान पर भी व्यवस्थित ढंग से सोच सकेंगे। इसके साथ दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पराओं के बीच उभरे मतभेदों की स्थिति भी स्पष्ट हो सकेगी।
82 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only