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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्दर्भ 1. नेमिनाथ भवान्तर का प्रास्ताविक-मराठी भाषेच्या गर्भावस्थेपासूनच जैन पंथाचा मराठी भाषेशी आलेला दिसतो...मराठीचे बालपण जैनपरम्परेत जोपासले गेले. 2. लीलावई-कहा, गाथा 41 तथा 1330 3. कुवलयमाला, पृ. 152-3 अनु. 246 4. मन्हाटे बोलणे (जसोधर रास 5/1160) म्हराष्टि (हरिवंश पुराण 2166) मन्हाष्ट भाषा (पार्श्वनाथ भवान्तर 45) मन्हाष्ट कामराजकृत सुदर्शनचरित्र 15/683 मन्हाष्ट (वीरदासकृत सुदर्शनचरित भाषा मागधी (जसोधरपुराण गुणनन्दी 1/14)। मन्हाटी संस्कृत के लेखक शं. बा. जोशी इस प्रदेश का मूल नाथ मरहट्ट माना है-पृ. 31) 5. धर्मामृत 1 व 2 पद्मपुराण 1/36-43 हरिवंशपुराण 5/63-66 जसोधरपुराण 1/17 आदिपुराण (महीचन्द्र) 1/6 जसोधरदास (मेघा पण्डित 1/68) सुदर्शनचरित्र 25/31 जम्बूस्वामीपुराण (जिनसेन 1/24)। 6. श्रेणिकचरित्र हा अन्याय क्षमा करावा। पहिल्या ग्रन्थीं उपमा। कथिली नाहीं दुःख प्रेमा। ती म्या अद्यमान वर्णिली। 38/199 हा अपराध घाला पोटीं। पुढे कथेवरी द्यावी दृष्टि 138/199 येथे कासिया विस्तार। ऐसे न वदावें श्रोते चतुर । नवरस कथेचा प्रकार। याच चरित्री आणिला॥ 39/195 7. जिनरत्नकोश, पृ. 331 8. प्राचीन मराठी जैन साहित्य डॉ. सुभाषचन्द्र अक्कोळे पृ. 237 9. रयणसेहरनिवकहा, पृ. 10 10. अमितगतिकृत धर्मपरीक्षा 1/10-12 न बुद्धिगर्वेण न पक्षपाततो मयान्यशास्त्रार्थविवेचनं कृतम्।। विमुच्य मार्ग कुगतिप्रवर्तकं श्रयन्तु सन्तः सुगतिप्रवर्तकम्। 11. जिनसागरकृत पद्मावती स्तोत्र-12 . 12. प्राचीन मराठी जैन साहित्य, डॉ. सुभाषचन्द्र अक्कोळे पृ. 56 13. परमहंसकथा जीवराज जैन ग्रन्थमाला पृ. 51 14. अजितकीर्तिकृत अलंकारचिन्तामणिः तेन संवेद्यमानो यो मोहनीयसमुद्भवः। रसाभिव्यंजकस्थायिभाव चिवृत्तिविपर्ययः ।। 15. एकला आत्मा कर्मे वेढिला/तैसे लक्ष्मण म्लेंछे वेढिला। पद्मपुराण 16/133 की कल्पवृक्ष ___ सांडोनी वेगा/बाभळीच्या भक्षी शेंगा।। जसोधररास, 239 16. गुणकीर्तिकृत पद्मपुराण 18/220 17. प्राचीन मराठी जैन साहित्य, पृ. 25 18. वही, उद्धृत, पृ. 109 19. वहीं उद्धृत चारठाणा व्रतकथा पृ. 93 20. वर्तमान कालीन मराठी जैन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-7 मराठी जैन साहित्य :: 837 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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