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रस सम्यक्त्व कौमुदी में है। वीभत्स कामजीवन की आधारभूत स्त्रियों के प्रति विरक्ति में है। गुणकीर्ति का पद्मपुराण, जनार्दन का श्रेणिकचरित व जिनसेन का जम्बूस्वामीचरित्र रस-दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।
श्लेषात्मक क्लिष्ट रचना के प्रति इन कवियों का उपेक्षाभाव स्वाभाविक है, क्योंकि, ये कवि सामान्यजन के लिए कविकर्म कर रहे थे। संगीतात्मकता पर ये अधिक सजग है, इसलिए अनुप्रास व सामान्य यमक इनके लिए उपयोगी रहे हैं। जनार्दन नये उपमानों की योजना करते हैं। अलंकार वस्तु व दृश्य का चित्र उपस्थित करने में समर्थ हैं। इन्होंने अलंकारों के बिना भी अनेक दृश्यों के सजीव चित्र उपस्थित किये हैं।
श्रेणिक, अभयकुमार, चेलना, जसोधर, अमृतमती, सुदर्शन, जम्बूस्वामी, जीवन्धर आदि सभी के चरित्र सीमाओं में आबद्ध होते हुए मार्मिक बन पड़े हैं। प्रकृति चित्रणों में नया व ताजापन है, प्राचीन काव्यों का अनुकरण नहीं।
• गर्जना गजाच्या गजघण्टा। अभ्रपटल रथ दाटा।
विजा लवती विकटा। तेथे पै।।16 छन्दों की दृष्टि से ओवी और अभंग ये प्राचीन मराठी के लोकप्रिय छन्द हैं। संस्कृत में अनुष्टुप् की तरह ओवी छोटा-सा व सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है। प्रायः सभी जैन कवियों ने ओवी का ही प्रयोग अधिक किया है। सम्भव है ओवी अनुष्टुप् का अपभ्रंश ही हो। तीन चरणों वाली ओवी को गायत्री छन्द कहा है। कुछ कवियों ने संस्कृत वृत्तों का उपयोग किया है। भक्तामर का अनुवाद वसंततिलका वृत्त में ही हुआ है।
अभंग का उपयोग मुक्तककाव्य के लिए होता है। मराठी संत वाङ्मय में अभंग का अधिक प्रयोग है। महतीसागर, कवीन्द्रसेवक व चिमनापण्डित ने भी भक्ति व वैराग्य के लिए अभंग रचना की। इनमें चिमना पण्डित के अभंग अप्राप्त हैं। जैन कवियों ने राजस्थानी हिन्दी व गुजराती से दूहा, चउपइ, वस्तु (रड्डा) सवैया आदि छन्द मराठी को दिये हैं। ___भाषा की दृष्टि से भी इन कवियों का मराठी भाषा व साहित्य को प्रदेय अनुपेक्षणीय है। पन्द्रहवीं शताब्दी से आज तक की मराठी जैन साहित्य की यात्रा एक दीर्घयात्रा है। इस यात्रा में स्थानीय व काल के प्रभाव पड़े हैं। इसका आरम्भ विदर्भ प्रदेश में गुजराती कवियों ने किया है। इसके प्रथम कवि गुणदास (गुणकीर्ति) ईडर पीठ से सम्बद्ध किन्तु जैसवाल जाति के थे।” इसलिए इनकी भाषा पर गुजराती व हिन्दी का प्रभाव है। आरम्भिक साहित्य के आधारभूत ग्रन्थ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के अतिरिक्त गुजराती, कन्नड भी रहे हैं। अत: इसमें देखियला, जिम, तिम, पाखे, कहना, काजो, हनाना, सुहावणा, पखी, झूलना आदि गुजराती शब्दों के साथ बोने, मातु, गुढी, मांदुस, 834 :: जैनधर्म परिचय
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