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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुन्दकुन्दाचार्य के सभी ग्रन्थ (प्राकृत), छहढाला (हिन्दी), एम. सी. पद्मनाभशर्म द्वारा गोम्मटसार (प्राकृत), यशस्तिलक चम्पू (संस्कृत), पंडित सुब्बय्य शास्त्री द्वारा षट्खंडागम के पहले दो भाग, एस्. बि. बसंतराजय्या द्वारा कुन्दकुन्दाचार्य के अष्टपाहुड़, योगीन्दु कृत योगसार भाषान्तरित हुए हैं। डॉ. जयचन्द्र ने आरामसोहा कहा (प्राकृत) छक्कंडागम लेहण कथा (हिन्दी) आदि कृतियों का भाषान्तर किया है। राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व संशोधन संस्था द्वारा धवला ग्रन्थ के सभी सम्पुट व चुने हुए धवलेतर कृतियों का भाषान्तर हो रहा है। धवलेतर कृतियों की श्रृंखला में डॉ. एस. वि. सुजाता द्वारा पुष्पदन्त कवि का तिसट्टि महापुरिस, गुणालंकार का अनंतनाथ पुराण कन्नड़ रूप में प्रकाशित है। उन्हीं के द्वारा भाषान्तरित 'अमेरिकादल्लि जैनधर्म' (मूल अंग्रेजी डॉ. भुवनेन्द्रकुमार) अमेरिका में जैन समाज का निकट चित्रण है। श्रीमति कौसल्या धरणेन्द्रय्य ने मरणकंडिका का कन्नड़ अनुवाद किया है। विद्वानों द्वारा जैन वाङ्मय सम्बन्धी अध्ययन ग्रन्थों एवं सान्दर्भिक ग्रन्थों की रचना अविरत हो रही है। पंडित भुजबलि शास्त्रि द्वारा रचित कन्नड़ प्रान्तीय ताड़पत्रीय सूचि (पांडुलिपि), आदर्श साहितिगळु, आदर्श जैन वीररु, आदर्श जैन महिळेयरु उपयुक्त सन्दर्भ ग्रन्थ हैं। उन्होंने पम्पयुग के जैन कवि आदि कृतियों की हिन्दी में रचना करके हिन्दी भाषिक विद्वानों को कन्नड़ वाङ्मय का परिचय कराया है। डॉ. एम. डी: वसन्तराज ने 'जैनागम इतिहास दीपिके' में आगम का उद्गम, लिपिबद्ध होने का इतिहास सविस्तार चित्रण किया है। जैन तत्त्व व ग्रन्थों पर अनेक विद्वानों द्वारा प्रस्तुत डाक्टरेट निबन्ध प्रकाशित हुये हैं। डॉ. टि. वि. वेंकटाचल शास्त्रि के 'कन्नड़ नेमिनाथ पुराणगळु-ओंदु तौलविक अध्ययन', डॉ. राजशेखर इच्वंगि के 'पार्श्वनाथ पुराणगळु-ओंदु तौलविक अध्ययन', डॉ. एम. ए. जयचन्द्र के 'प्राचीन कन्नड़ जैन साहित्यदल्लि जानपद कयेगळु-ओंदु अध्ययन', डॉ. पद्मा शेखर के 'कन्नड़दल्लि जीवन्धर साहित्य' डॉ. एस. पि. पद्मप्रसाद के 'जैन जनपद साहित्य-ओंदु अध्ययन' आदि, इनके अलावा विविध विषयों पर अध्ययन ग्रन्थ भी प्रकाशित हुये हैं। कुछ और प्रमुख कृतियाँ है। डॉ. हं. प. नागराजय्या के 'यक्षयक्षियरु', 'होंबुजद शासनगळु', डॉ. अप्पण्ण हंजे के 'धारवाड़ परिसरदल्लि जैनधर्म' आदि। जैन महिलाओं द्वारा साहित्यिक क्षेत्र में की गयी साधना भी उल्लेखनीय है। डॉ. कमला हंपना द्वारा प्राचीन कन्नड़ काव्यों का सम्पादन के अलावा जैन साहित्य परिसर आदर्श जैन महिळेयरु जैसे अध्ययन ग्रन्थों की रचना हुयी है। डॉ. सरस्वति विजयकुमार के पी-एच. डी. निबन्ध आदिपुराणगळ तौलनिक अध्ययन' में संस्कृत, कन्नड़ आदिपुराणों की समीक्षा की गयी है। जि. एस. बसंतमाला लोक गीतों के संकलन व अध्ययन के साथ बच्चों के लिए धार्मिक कहानियाँ लिखने में प्रसिद्ध है। डॉ. पद्मावतय्या ने 816 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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