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आचार्य (11वीं शती लगभग) द्वारा रचित पुराणसार-संग्रह भी उल्लेखनीय हैं। उक्त पुराण-साहित्य के साथ-साथ किसी विशेष तीर्थंकर या महापुरुष पर भी पौराणिक साहित्य की अनेक रचनाएँ हुई हैं, किन्तु उन सब का निरूपण करना यहाँ स्थान की मर्यादा के कारण सम्भव नहीं है। पुराणों के अलावा भी अनेकानेक चरित-काव्यों व कथा-ग्रन्थों की रचना होती रही है। इनका संक्षिप्त निरूपण आगे प्रस्तुत है।
संस्कृत-काव्य-परम्परा
स्वर्णयुग माने जाने वाले गुप्तकाल में संस्कृत में उच्च कोटि की रचनाएँ होने लगी थीं। शास्त्रीय पद्धति पर काव्य की अनेक विधाएँ-महाकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पूकाव्य, कथाकाव्य, दूतकाव्य, अनेकार्थकाव्य, नाटक आदि विकसित हुईं। जैन परम्परा में आलंकारिक शैली में चरित व कथाओं पर काव्य-रचनाएँ निर्मित की जाने लगीं। समस्त जैन काव्य साहित्य का परिचय देना यहाँ सम्भव नहीं है, मात्र एक झलक ही प्रस्तुत की जा सकती है, किन्तु समग्र जैन संस्कृत काव्य साहित्य के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह बहुआयामी है, प्रचुर मात्रा में है और उच्चस्तरीय भी। रस, ध्वनि, शब्दालंकार, अर्थालंकार प्रतिभा, किसी भी क्षेत्र में जैन आचार्य अजैन कवियों व साहित्यकारों में किसी भी तरह पीछे नहीं रहे हैं। चरितनामान्त संस्कृत-काव्य
प्रारम्भ में पुराणशैली व काव्यशैली दोनों सम्पृक्त थीं, किन्तु कालान्तर में अलंकरण की प्रवृत्ति एवं सौन्दर्य-बोध की चेतना का विकास हुआ, तब महाकाव्यों का पृथक् रूप में निर्माण प्रारम्भ हुआ। पुराण-कथाओं से अनुप्राणित चरित-काव्य लिखे गये। ये वे काव्य हैं, जिनमें तीर्थंकरादि महापुरुषों का आख्यान निबद्ध है, किन्तु वस्तु-व्यापारों का नियोजन काव्यशास्त्रीय परम्परा के अनुरूप किया जाता है। पुराण में अनेक नायकों का अस्तित्व होता है, वहाँ इन काव्यों में एक ही नायक की प्रधानता होती है। इनके माध्यम से जीवनोपयोगी सन्देश दिया गया है, जो पुरुषार्थ को जाग्रत करता है। ऐसे चरितकाव्यों में जटासिंहनन्दि (ई. 8वीं शती) द्वारा रचित 'वराङ्गचरित' है। इसमें तीर्थंकर नेमिनाथ व श्रीकृष्ण के समकालीन 'वराङ्ग' नामक महापुरुष का चरित वर्णित है। इसमें 31 सर्ग हैं, यद्यपि महाकाव्य-लक्षण के अनुसार 30 से अधिक सर्ग नहीं होने चाहिए। अश्वघोष कवि के बुद्धचरित के समकक्ष इस काव्य को रखा जा सकता है। इसी तरह वीरनन्दी (ई. 10) कृत 'चन्द्रप्रभचरित', असग-कवि (10वीं शती) कृत 'शान्तिनाथचरित' व वर्धमानचरित', वादिराज (ई. 11वीं शती) कृत 'पार्श्वनाथचरित', आचार्य हेमचन्द्र (ई. 12वीं शती) कृत 'कुमारपालचरित', माणिक्यचन्द्र सूरि (वि.
संस्कृत साहित्य-परम्परा :: 801
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