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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवियों ने स्तुति-साहित्य के माध्यम से संस्कृत काव्य-परम्परा का श्रीगणेश किया है। इन कवियों ने इष्टदेव की स्तुति के ब्याज से सर्वज्ञ-सिद्धि तथा एकान्तवादों की समीक्षा करते हुए न्यायपरम्परा का भी श्रीगणेश किया है। कालक्रम से दार्शनिक मतस्थापन का लक्ष्य न रखकर मात्र भक्तिभावपूर्ण स्तुति-काव्यों की रचना भी प्रारम्भ हुई। दूसरी ओर अभीष्ट देव तीर्थंकर आदि की कथाओं को ऐतिहासिक व काव्यात्मक- दोनों दृष्टियों से काव्यरूप में रूपायित करने की भावना से पुराण-साहित्य भी प्रकाश में आया। वैदिक परम्परा में रचित पुराणसाहित्य भी जैनाचार्यों के समक्ष था ही, वहाँ पुराण के विशिष्ट पाँच लक्षण निर्धारित थे। वे थे- सृष्टि वर्णन, प्रलय वर्णन, राजवंश-क्रम वर्णन, मन्वन्तर-वर्णन, राजवंश का चरित-वर्णन। जैन परम्परा में भी पुराणसाहित्य में इन पाँच लक्षणों को न्यूनाधिक रूप में समाहित किया गया, किन्तु जैन परम्परा का अपना वैशिष्ट्य था, जिसके कारण जैन पुराण वैदिक पुराणों से अपना पार्थक्य सुरक्षित रखे हुए हैं, यद्यपि वर्णन-शैली की दृष्टि से दोनों में समानता भी दृष्टिगोचर होती __ स्वतन्त्र स्तुतिरूप में आचार्य समन्तभद्र-कृत 'जिनशतक' (अपर नाम-स्तुतिविद्या व जिनशतकालंकार) भी उल्लेखनीय है। इसी क्रम में मानतुंगाचार्य (5-6शती लगभग) द्वारा रचित 'भक्तामर स्तोत्र' अधिक लोकप्रिय व प्रसिद्धि प्राप्त है। इसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति की गयी है। परम्परा भेद से इसमें 48 या 44 संस्कृत पद्य पाये जाते हैं। इसकी लोकप्रियता ही कहेंगे कि इसका सम्पादन व जर्मन भाषा में (डॉ. जैकोबी द्वारा) अनुवाद किया गया है। इस स्तोत्र पर अनेक टीकाएँ भी लिखी गयीं। भक्तामर स्तोत्र के पद्याशों को आधार बनाकर समस्यापूर्ति के रूप में भी अनेक स्तोत्रों का निर्माण हुआ है, जिनमें धर्मसिंह-कृत 'सरस्वतीभक्तामरस्तोत्र' तथा भावरत्न-कृत 'नेमिभक्तामर स्तोत्र' उल्लेखनीय हैं। भक्तामर स्तोत्र की ही तरह अन्य लोकप्रिय स्तोत्र 'कल्याणमन्दिर स्तोत्र' है, जिसमें 44 पद्य हैं। इसके कर्ता कुमुदचन्द्र (कुछ के मत में सिद्धसेन) हैं। इसका भी जर्मनी में अनुवाद हुआ है और 20-25 टीकाएँ भी इस पर लिखी गयी हैं। दोनों ही स्तोत्रों में काव्यात्मक कल्पना व सुन्दर अलंकारों का समावेश है। इसी क्रम में पूज्यपाद देवनन्दी (ई. 5) कृत (26 पद्यों का) सिद्धप्रियस्तोत्र व दशभक्तियाँ (या बारह भक्तियाँ), धनञ्जय कवि (7-8 शती) द्वारा रचित (40 पद्यों का) 'विषापहार स्तोत्र', अकलंक (ई. 8) कृत (16 पद्यों का) 'अकलंक स्तोत्र', बप्पभट्ठि (ई.9) कृत 'सरस्वती स्तोत्र', आचार्य विद्यानन्दि (8-9वीं ई.) कृत 'पार्श्वनाथ स्तोत्र', वादिराज कृत (11वीं शती) (26 पद्यों का) “एकीभाव स्तोत्र', एवं भूपालकवि कृत 'जिनचतुर्विंशतिका', हेमचन्द्र कृत (12वीं शती) 'वीतराग स्तोत्र', 'महादेव स्तोत्र', व 'महावीर स्तोत्र' आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। इन सभी संस्कृत साहित्य-परम्परा :: 799 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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