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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org 3. जैन साहित्य प्रो. वृषभ प्रसाद जैन जैन साहित्य पर या उसकी विशेषताओं पर जब चर्चा करनी हो, तो प्रमुख रूप से निम्न बिन्दुओं पर विचार उभरते हैं 1. वह साहित्य जो जैन रचनाकारों के द्वारा रचा गया, 2. जैनधर्म की मूल मान्यताओं को लेकर जो सृजनात्मक साहित्य रचा गया, वह जैनाचार्यों द्वारा रचा गया हो अथवा जैनेतर रचनाकारों, द्वारा रचा गया हो। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साहित्य मात्र को देखने की दृष्टि क्या जैनाचार्यों की कुछ जैनेतर साहित्यकारों से भिन्न रही । यदि रही तो किन बिन्दुओं पर ? पहले दोनों बिन्दुओं पर विचार विभिन्न भाषायी साहित्य वाले आलेखों में हुआ है। जैसे जैन संस्कृत साहित्य में, जैन प्राकृत साहित्य में, जैन मराठी साहित्य में आदि-आदि। तीसरे बिन्दु पर विचार लगभग उन आलेखों में नहीं हैं और इस बिन्दु पर जब हम गम्भीरता से विचार करते हैं, तो यह बात साफ सामने आती है कि साहित्य की रचना जैन जीवन का अभिन्न अंग रही है। यही कारण है कि सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के साहित्य पर दृष्टि डालें, तो आपको यह बात साफ दिख जाएगी कि विभिन्न भारतीय भाषाओं में ऐसी अनेक साहित्यिक कृतियाँ हैं जो धार्मिक साहित्य नहीं है, जो दार्शनिक साहित्य भी नहीं है, पर उत्कृष्ट साहित्य की वे प्रतिरूप हैं। आप तमिल के साहित्य को उठाकर देखें, कन्नड़ के साहित्य को उठाकर देखें, हिन्दी के साहित्य को उठाकर देखें आदि-आदि, तो यह बात साफ दिखेगी कि इन भाषाओं का खासकर जो आदिम साहित्य है, वह उत्कृष्ट साहित्य का नमूना होने के साथ-साथ विभिन्न साहित्यिक मानकों को गढ़ने में मार्गदर्शकजैसी भूमिका निभाता है, और उन मानकों / पैमानों पर चलकर अधिकांश भारतीय भाषाओं का साहित्य विकसित हुआ या अधिकांश उत्तरवर्ती भारतीय भाषाओं के साहित्य ने अपने निकास में उन पैमानों को आत्मसात किया । आप रसप्रधान जैन साहित्य को देखें तो श्रांगारिक साहित्य में भी वत्सल और शान्त की प्रधानता के दर्शन होते हैं और यह वत्सलरूप अद्भुत है। वैसे दर्शन सम्पूर्ण भारतीय 764 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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