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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फहरायी थी। यथा'काराविवि णाहेयहो णिकेउ, पविइण्णु पंचवणं सुकेउ' विबुध श्रीधरकृत, पासणाहचरिउ, 1/9/11 "येनाराध्य विशुद्ध-धीरमतिना देवाधिदेवं जिनम्। सत्पुण्यं समुपार्जितं निजगुणैः संतोषिता बान्धवाः॥ जैनं चैत्यमकारि सुन्दरतरं जैनी प्रतिष्ठां तथा। स श्रीमान्विदितः सदैव विजयात्पृथ्वीतले नट्ठला॥" जैनग्रन्थ-प्रशस्ति-संग्रह, भाग 2, पृष्ठ 85 श्री अनंगपाल राजा के प्रधानमन्त्री श्री नट्ठल साहू ने तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) का एक शिखरबद्ध मन्दिर बनवाया और मूर्ति की पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा कराकर उस मन्दिर में विराजमान करवायी। (इस मन्दिर पर पंचवर्णी महाध्वजा फहरा रही थी)। मन्दिर में प्रवेश कर उन साहू नट्ठल ने मन से तीर्थंकर-प्रतिमा को भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। वे साहू नट्ठल सदैव विजयी हों। ____ पंचवर्णी ध्वजगीत- जब भी कभी धार्मिक व मांगलिक कार्यक्रम होते हैं, तो उसमें सर्वप्रथम पंचरंगी ध्वजा को फहराया जाता है। तत्पश्चात् ध्वज गीत गाया जाता है। पंचवर्ण का फल वर्ण स्वस्थता व प्रसन्नता के भी प्रतीक होते हैं। जिस प्रकार वर्तमान में रंगों के द्वारा बीमारी दूर की जा रही है, उसीप्रकार जैनग्रन्थों में लिखा है कि यदि पाँच वर्षों का ध्यान किया जाए तो उससे अनेक प्रकार लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। पंचवर्ण का फल इसप्रकार है "शान्तौ श्वेतं जये श्याम, भद्रे रक्तमभये हरित्। पीतं धनादिसंलाभे, पंचवर्ण तु सिद्धये॥" उमास्वामि-श्रावकाचार, 138, पृष्ठ 55 1. श्वेतवर्ण शान्ति का प्रतीक है। 2. श्यामवर्ण विजय का सूचक है। 3. रक्तवर्ण कल्याण का कारक है। 4. हरितवर्ण अभय को दर्शाता है। 5. पीतवर्ण धनादि के लाभ का दर्शक है। इसप्रकार पाँचों वर्ण सिद्धि के कारण हैं। संक्षेप में, प्रतीक परम्परा विचार करें तो यह बात स्पष्ट होती है कि जैन-जीवन प्रतीकों से/प्रतीकात्मकता से भरा है। प्रतीकात्मकता जीवन्तता का आधार है और यह प्रतीकात्मकता जैनों के आदिकाल से लेकर वर्तमान तक विकसित होती आयी है। जैनों ने अपनी प्रतीकात्मकता का प्रयोग तन्त्र, मन्त्र, पूजा पद्धति, यन्त्र, कलाओं एवं ध्यान आदि 684 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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