SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतीक दर्शन एलाचार्य प्रज्ञसागर मुनि अनादिकाल से धर्म और दर्शन के साथ प्रतीकों का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। जिसके फलस्वरूप स्थापत्य कला, चित्रकला पाण्डुलिपियों तथा शिलालेखों में भी प्रतीकों को पर्याप्त स्थान मिला। धर्म भावना प्रधान होता है, उसे अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीकों का अवलम्बन एक प्रबल साधन है। शास्त्र वचन है कि साधन के बिना साध्य की सिद्धि नहीं होती है। प्रतीक रूप साधन से किसी वर्ग विशेष का ही ज्ञान नहीं होता, अपितु सम्पूर्ण संस्कृति व सभ्यता का सम्यग्ज्ञान होता है। जैन संस्कृति में अनेक प्रतीक प्रतिबिम्बित हैं, जो अपने आप में अनेक धार्मिक रहस्यों व प्राचीन संस्कृति को समाहित किए हुये हैं। जैनधर्म में प्रतीकों के माध्यम से चेतन तत्त्व को जड़ से ऊपर उठाने एवं आत्मतत्त्व प्रदान करने की कला का प्रतिपादन किया है। ये तदाकार प्रतीक अतदाकार होने के लिए निमित्त हैं उपादान जागृत करने के लिए। अतदाकार प्रतीक भावनात्मक तथा तदाकार प्रतीक चित्रात्मक होते हैं। चित्र चारित्रवर्द्धक, ज्ञानवर्द्धक, पुण्यवर्द्धक, उत्साहवर्द्धक एवं सम्यग्दर्शनवर्द्धक होते हैं। जैनाचार्य चित्रों के महत्त्व को इस प्रकार कहते हैं 'कलानां प्रवरं चित्रं, धर्म-कामर्थ-मोक्षदम्। माग्ल्यं प्रथमं चैतद्, गृहे यत्र प्रतिष्ठितम्॥' चित्र-कला की श्रेष्ठता (रमणीयता) का सूचक यह चित्र घर में जहाँ भी सद्भाव स्थापित किया जाता है, उससे परम मंगल होता है और उससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ भी प्राप्त होते हैं। जैनधर्म में तदाकार प्रतीकों की संख्या अनेक है जैसे- समवसरण, मानस्तम्भ, चैत्यालय, जिनमन्दिर, जिनप्रतिमा, चैत्यवृक्ष, पंचपरमेष्ठी, नन्दीश्वरद्वीप, सुमेरुपर्वत, तीनलोक, अष्ट प्रातिहार्य, अष्टमंगल द्रव्य, सोलह स्वप्न, स्वस्तिक, जैन प्रतीक, श्रीवत्स, बीजाक्षर, पंचरंगी ध्वज, विधान मंडप, श्रीमंडप, धर्मचक्र तथा लांछन आदि। जैन ध्वज, जैन प्रतीक एवं जैनधर्म से सम्बन्धित अन्य प्रतीकों का संक्षिप्त परिचयविवरण इस प्रकार है 670 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy