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मृत्यु होती है। मनुष्य भागों में छेद हो जाने पर पुत्र-जन्म होता है तथा वैभवशाली पदार्थों की प्राप्ति होती है। देवताओं के भागों में छेद होने पर धन, ऐश्वर्य, वैभव, सम्मान एवं भोगों की प्राप्ति होती है। देवता, मनुष्य और राक्षस इन तीनों भागों में छेद हो जाने पर अत्यन्त अनिष्ट होता है।
नये वस्त्रों में कुर्ता, टोपी, कमीज, कोट आदि ऊपर पहने जाने वाले वस्त्रों का विचार प्रमुख रूप से करना चाहिए तथा शुभाशुभ फल ऊपरी वस्त्रों के जलने-कटने का विशेष होता है। सब से अधिक निकृष्ट टोपी का जलना या फटना कहा गया है।
अन्तरिक्षनिमित्तज्ञान- ग्रह-नक्षत्रों के उदय या अस्त द्वारा शुभाशुभ का निरूपण करना अन्तरिक्ष निमित्त है। शुक्र, बुध, मंगल, गुरु और शनि इन पाँच ग्रहों के उदयास्त द्वारा ही शुभाशुभ फल का निरूपण किया जाता है। यतः सूर्य और चन्द्रमा का उदयास्त प्रतिदिन होता है, अतएव शुभाशुभ फल के लिए इन ग्रहों के उदयास्त विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
इस निमित्त ज्ञान द्वारा प्राकृतिक एवं राजनीतिक आपदा का शुभाशुभ फल कहा जाता है।
लक्षणनिमित्तज्ञान- स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र आदि चिह्नों के द्वारा एवं हस्त, मस्तक और पद-तल की रेखाओं द्वारा शुभाशुभ का निरूपण करना लक्षण-निमित्त है। यह ज्ञान सामुद्रिक शास्त्र के अन्तर्गत आता है।
करलक्खण में बताया गया है कि मनुष्य लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मरण, जय-पराजय, एवं स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य रेखाओं के बल से प्राप्त करता है। पुरुषों के लक्षण दाहिने हाथ से और स्त्रियों के बाएँ हाथ की रेखाओं से अवगत करने चाहिए।
हस्तसंजीवन में आचार्य मेघविजयगणि ने बताया है कि सब अंगों में हाथ श्रेष्ठ है, क्योंकि सभी कार्य हाथ द्वारा किये जाते हैं। हाथ में जन्मपत्री की तरह ग्रहों का अवस्थान बताया है। __ तर्जनी मूल में बृहस्पति का स्थान, मध्यमा अँगुली के मूल देश में शनि का स्थान, अनामिका के मूल देश में रवि स्थान, कनिष्ठा के मूलदेश में बुध स्थान तथा बृहद्अंगुष्ठ के मूल शुक्र-स्थान है। मंगल के दो स्थान बताए गये हैं-1. तर्जनी और बृहद्गुलि के बीच में पितृरेखा के समाप्ति स्थान के नीचे और 2. बुध के स्थान के नीचे तथा चन्द्र के स्थान के ऊपर आयुरेखा और पितृरेखा के नीचेवाले स्थान से बताया गया है।
रेखाओं के वर्ण का फल बतलाते हुए जैनाचार्यों ने लिखा है कि रेखाओं के रक्तवर्ण होने से मनुष्य आमोदप्रिय, सदाचारी और उग्र स्वभाव का होता है। यदि रक्तवर्ण में काली-आभा मालूम पड़े, तो प्रतिहिंसापरायण, शठ और क्रोधी होता है। इस शास्त्र में प्रधान रूप से आयुरेखा, मातृरेखा, पितृरेखा एवं समयनिर्णय रेखा,
ज्योतिष : स्वरूप और विकास :: 661
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