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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष : स्वरूप और विकास आलोक जयपति जैनाचार्यों ने ज्योतिष के क्षेत्र में निम्न प्रकार योगदान देकर भारतीय ज्ञान, भारतीय साहित्य और भारतीय मनीषा की श्रीवृद्धि में अपनी भूमिका निभायी है— 1. वैचारिक रूप में जैनाचार्यों की प्रमुख मान्यता अन्य भारतीय ज्योतिष चिन्तकों से इस बिन्दु पर अलग है कि वे मानते हैं कि ज्योतिष ज्ञान जीव के लिए कारक नहीं, सूचक है। हाँ, जीव ज्योतिष ज्ञान की सूचना को लेकर अपने क्रियमाण कर्मों की दिशा बदलकर या सम्यक् राह पर चलकर अपनी भवितव्यता को बदल सकता है। 2. जैनाचार्य मनुष्य के जीवन में आने वाली परेशानियों के निराकरण के निमित्त ग्रह - पूजा को महत्व नहीं देते, वे कहते हैं कि जितेन्द्र की भक्ति / पूजा से दुष्ट ग्रह स्वयमेव शान्त होते हैं और जीवन सुखमय होता है। 3. पूजा, दीक्षा व ग्रह- कर्म आदि सभी के लिए जैनाचार्य भी मुहूर्त विज्ञान को महत्त्व देते हैं। 4. जैनाचार्य नक्षत्रों की संख्या 28 मानते हैं। 5. जैनाचार्यों ने केवल जैन ज्योतिष के विकास में ही योगदान नहीं दिया, बल्कि भारतीय ज्योतिष के विकास में भी योगदान दिया है। मनुष्य की सोचने-समझने की योग्यता ने मनुष्य को 'क्यों' और 'कैसे' के सवाल उठाये। इसके फलस्वरूप वह अपने वर्तमान और भविष्यकाल के विषय की जानकारी के लिए हमेशा से उत्सुक बना रहा है। मानव मन की नयी वस्तुओं के विषय में जानने की प्रबल इच्छा हर समय बनी रहती है। जैसे पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की घट रही घटनाएँ। सूर्य प्रतिदिन पूर्व दिशा में क्यों उदित होता है ? ऋतुएँ क्रमानुसार क्यों आती हैं या आकाशमण्डल में ग्रह क्यों भ्रमण करते हैं ? इत्यादि । तो प्रथम मनुष्य ज्योतिष : स्वरूप और विकास :: 649 इसी दिशा में जब मनुष्य का ध्यान आकाश - मण्डल की तरफ गया, For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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