SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थकांड में पृथ्वी, अप, तेजस्, वायु और वनस्पति कायिक जीव-पर्याय का विस्तृत निरूपण है। द्वीन्द्रिय जीवों की नामावलि चार श्लोकों में दी गयी है और त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों की नामावली भी पूरे विस्तार के साथ 20 श्लोकों में वर्णित है। यहाँ त्रस और स्थावरों के पर्यायवाची शब्दों का विस्तार इतना अधिक है कि संस्कृत भाषा के किसी भी कोश में पर्यायवाची शब्दों का उतना वर्णन नहीं मिलता। ____ अभिधानचिन्तामणि एक पद्यमय कोश है, इसमें कुल छह कांड हैं। पहला कांड देवाधिदेव नाम का है, इसमें 96 पद्य हैं। दूसरे देवकांड में 250 पद्य हैं। तीसरे भर्त्यकांड में 598 पद्य हैं। चौथे भूमिकांड में 423 पद्य हैं। पाँचवें नारक कांड में 6 पद्य हैं एवं छठे सामान्य कांड में 179 पद्य हैं। इस तरह कोश में कुल 1542 पद्य हैं। इस कोश के प्रारम्भ में ही कोशकार ने रुढ़, यौगिक और मिश्र शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखने की प्रतिज्ञा की है। सम्बन्धों में स्व-स्वामि-भाव, जन्य-जनक-भाव, कार्य-कारक-भाव, भोज्य-भोजक-भाव, पति-कलत्र-भाव, वाह्य-वाहक-भाव, ज्ञातिसम्बन्ध, आश्रयाश्रयिभाव एवं वध्य-वधकभाव को ग्रहण किया गया है और इन्हीं सम्बन्धों के अनुसार पर्याय शब्दों का कथन किया है। तत्पश्चात् अन्यान्य व्युत्पत्तिजन्य पर्यायों का प्रतिपादन किया गया है। ___अभिधानचिन्तामणि में कई मौलिकताएँ पायी जाती हैं। पहली मौलिकता यह है कि हेमचन्द्र ने धनञ्जय के समान शब्दयोग (मूल शब्द में दूसरा शब्द जोड़कर) से अनेक पर्यायवाची शब्दों को बनाने का विधान किया है, परन्तु पद्धति में 'कविरुढ्या ज्ञेयोदाहरणावली' के अनुसार उन्हीं शब्दों को ग्रहण किया गया है, जो कवि-सम्प्रदाय में प्रचलित हैं। जैसे-पतिवाचक शब्दों में कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रणयिनी एवं निभा शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पत्नी के नाम और कलत्र वाचक शब्दों में वर, रमण, प्रणयी एवं प्रिय शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पति-वाचक शब्द बन जाते हैं। गौरी के पर्यायवाची शब्द बनाने के लिए शिव शब्द में उक्त शब्द जोड़ने पर शिव-कान्ता, शिव-प्रियतमा, शिव-वधू, शिव-प्रणयिनी आदि शब्द बनते हैं। इस कोश की एक विशेषता यह है कि इसमें पर्यायवाची शब्दों की संख्या बहुत है। ___ अनेकार्थक संग्रह- अभिधानचिन्तामणि में जहाँ हेमचन्द्र ने एक शब्द के अनेक पर्यायवाची बताए हैं, वहाँ इस कोश में एक शब्द के अनेक अर्थों का संकलन किया है। प्रकृत कोश की शैली भी अभिधान-चिन्तामणि की ही है। ग्रन्थ में सात कांड हैं, जिनके कुल 1931 श्लोक हैं। पहले एकस्वर कांड में 160 श्लोक, दूसरे द्विस्वरकांड में 608 श्लोक हैं। तीसरे त्रिस्वरकांड में 814 श्लोक हैं। चौथे चतुःस्वर कांड में 359 588 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy