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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिक उपयोगी तथा लोकप्रिय बनाया है। कोश में कुल 1700 संस्कृत शब्दों के अर्थ दिये गए हैं। नाममाला कोश पर अमर कीर्तिकृत (समय 15वीं शती) भाष्य भी उपलब्ध होता है। इसमें नाममाला के समस्त शब्दों की व्युत्पत्तियाँ की गयी हैं। इन व्युत्पत्तियों से शब्दों का सांस्कृतिक-इतिहास प्रस्तुत करने में बहुत सहायता मिलती है। ____ अनेकार्थ-नाममाला- यह भी महाकवि धनञ्जय की रचना है। इसमें एक शब्द के अनेक अर्थों का प्रतिपादन किया गया है। कोश में मात्र 46 पद्य हैं। मंगलाचरण के पश्चात् कवि ने कहा है कि कवियों की हितकामना की दृष्टि से गम्भीर, सुन्दर, विचित्र और व्यापक अर्थ को प्रकट करने वाले कुछ शब्दों का निरूपण करता हूँ गम्भीरं रुचिरं चित्रं विस्तीर्णार्थप्रकाशकम्। शाब्दं मनाक् प्रवक्ष्यामि कवीनां हितकाम्यया।। इस कोश में अद्य, अज, अंजन, अक्ष, आदि, अनन्त, अन्त, शब्द, अर्क, इति कदली, कम्बु, केतन, कीलाल, कैवल्य, कोटि, क्षीर आदि सौ शब्दों के विभिन्न अर्थों का संकलन किया गया है। अनेकार्थ निघंटु- इसकी रचना भी महाकवि धनञ्जय ने की है। इस कोश में 238 शब्दों के विभिन्न अर्थों का संकलन किया गया है। इसमें श्लोकों की कुल संख्या 154 है, जिनमें एक-एक शब्द के तीन-तीन, चार-चार अर्थ बतलाये गये हैं। ___ पाइयलच्छीनाममाला (प्राकृतलक्ष्मीनाममाला)- यह प्राकृतभाषा का प्रथम उपलब्ध कोशग्रन्थ है। इसके रचयिता कवि धनपाल हैं। इस कोश की रचना विक्रमसंवत् 1029 में धारानगरी में हुई थी। इससे पूर्व निघंटु, अमरकोश, हलायुध आदि अनेक संस्कृत के कोश-ग्रन्थों की रचना हो चुकी थी। पाइयलच्छीनाममाला में शब्दों का चयन अकारादि क्रम से न करके विषय, समय, स्थान आदि के आधार पर किया गया है। जैसे-प्रथम 1 से 7 गाथाओं में विभिन्न देव पर्यायों का उल्लेख है। 10वीं गाथा में कमल शब्द के पर्यायों का निरूपण है। कमल भौंरा का प्रिय है, अतः 11वीं गाथा में भौंरा के ग्यारह नाम बताए गये हैं। __इस कोश में कुल 279 गाथाएँ हैं। प्रथम गाथा में मंगलाचरण तथा ग्रन्थ के अन्त में चार गाथाओं में कवि ने अपना परिचय दिया है। शेष 274 गाथाओं में 998 शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का संकलन है। इसमें तीन प्रकार के शब्दों का संग्रह है-तत्सम, तद्भव एवं देश्य। इनमें संस्कृत व्युत्पत्तियों से सिद्ध प्राकृत शब्दों तथा देशी शब्दों का संकलन है। जैसे कि भ्रमर शब्दों के पर्यायवाची देते हुए लिखा है 586 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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