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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -यह इस आलेख का प्रमुख विचारणीय विषय है। ईश्वर के विषय में जैनेतर दार्शनिकों के विचार इस प्रकार प्राप्त हैं -- मीमांसादर्शन____मीमांसा शब्द का अर्थ किसी वस्तु के स्वरूप का यथार्थ-विवेचन। मीमांसा के दो भेद हैं -कर्ममीमांसा और ज्ञानमीमांसा। यज्ञों की विधि तथा अनुष्ठान का वर्णन कर्ममीमांसा का विषय है। जीव, जगत् और ईश्वर के स्वरूप तथा सम्बन्ध का निरूपण करना ज्ञान-मीमांसा का विषय है। कर्म-मीमांसा को पूर्व-मीमांसा तथा ज्ञान-मीमांसा को उत्तर-मीमांसा भी कहते हैं, किन्तु वर्तमान में कर्म-मीमांसा के लिए केवल मीमांसा शब्द का प्रयोग किया जाता है और ज्ञान-मीमांसा का 'वेदान्त' शब्द से अभिप्राय से लिया जाता है। ____ महर्षि जैमिनि मीमांसा-दर्शन के सूत्रकार है। मीमांसा-दर्शन में कुमारिलभट्ट का युग स्वर्ण युग के नाम से कहा जाता है। इस प्रकार मीमांसा-दर्शन में भाट्ट और प्राभाकर- ये पृथक् पृथक् सम्प्रदाय हुए हैं। ___मीमांसादर्शन में ईश्वर और सर्वज्ञ दोनों को नहीं माना गया है, क्योंकि किसी भी पुरुष में ज्ञान और वीतरागता का पूर्ण विकास सम्भव नहीं है। मीमांसक वेद को अपौरुषेय मानते हैं। वेद मुख्य रूप से अतीन्द्रियपदार्थ धर्म का प्रतिपादक है तथा अतीन्द्रियदर्शी कोई पुरुष सम्भव नहीं होने के कारण धर्म में वेद ही प्रमाण है। वेदान्तदर्शन उपनिषदों के सिद्धान्तों पर प्रतिष्ठित होने के कारण इस दर्शन का नाम वेदान्त प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों की रचना वेदों के बाद हुई, इसलिए उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं । वेदान्तदर्शन के अनुसार इस संसार में एक-मात्र ब्रह्म की ही सत्ता है तथा यहाँ जो नानात्मकता दृष्टिगोचर होती है, वह-सब मायिक है। वेदान्तदर्शन के तीनों प्रस्थान- (1) उपनिषद्, (2) ब्रह्मसूत्र, (3) श्रीमद्भगवतगीता में ईश्वर एवं उसके सृष्टिकर्तृत्व आदि का समर्थन दृढ़ता से प्राप्त होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि उपनिषदों की ब्रह्मैक्यवाद की धारणा ही ईश्वरवाद के रूप में विकसित हुई है। सरस्वती रहस्योपनिषद् एवं श्वेताश्वतरोपनिषद् में स्पष्टरूप से सर्व-तन्त्रस्वतन्त्र ईश्वर के स्वरूप का प्रतिपादन हुआ है। जो जगत् का कर्ता, विश्ववेत्ता, आत्मयोनि, स्वयम्भू, अद्वितीय, नित्य-परमात्मा आदि के रूप में स्वीकार्य है। ब्रह्मसूत्र के प्रमुख भाष्यकार शंकराचार्य, भास्कराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, मध्वाचार्य, वल्लभाचार्य आदि। इन्होंने अपने-अपने दृष्टि भेदों के अनुरूप ही सही ईश्वर की उपपत्ति जरूर की है। आचार्य शंकर ने कहा है कि सभी वेदान्तों में ईश्वर से ही सृष्टि की 50 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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