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भोगभूमि में उत्पन्न जीवों की वैभव-दर्शक-तालिका क्र. नाम तिलोय पण्णत्ती पृष्ठ 113 1. भूमि स्वच्छ, साफ, कीड़ों आदि से रहित, निर्मल-दर्पण-सदृश, पंच वर्ण की।
गाथा-324-325 2. तृण (घास) | पाँच वर्ण की मृदुल, मधुर, सुगन्धित और चार अंगुल-प्रमाण। गाथा-326 3. वापिकाएँ जल-जन्तु-रहित और सर्व व्याधियों को नष्ट करने वाले अमृतोपम निर्मल
| जल से युक्त । गाथा 328-330 4. प्रासाद अनेक प्रकार की मृदुल शय्याओं और अनुपम आसनों से युक्त । गा.- 331 पर्वत स्वर्ण एवं रत्नों के परिणाम स्वरूप तथा कल्पवृक्षों से युक्त और उन्नत।
गाथा-332 उभय तटों पर रत्नमय सीढ़ियों से संयुक्त और अमृत-सदृश उत्तम जल से
सहित। गाथा-334 7. जीव विकलत्रय एवं असंज्ञी जीवों का तथा रोग, कलह और ईर्ष्या आदि का
अभाव । गाथा-335-336 काल | रात-दिन के भेद, अन्धकार गर्मी-सर्दी की बाधा और पापों से रहित। गा.- 337 9. उत्पत्ति युगल-उत्पत्ति होती है। अन्य परिवार एवं ग्राम नगरादि से रहित होते हैं।
गाथा-338 10. बल एक पुरुष में नौ हजार हाथियों के बराबर। गाथा-342-344-345 11. शरीर प्रशस्त 32 लक्षण युक्त। कवलाहार करते हुए भी निहार से रहित। गा.- 344 12. कल्पवृक्ष |10 प्रकार के। गाथा-346 13. | पेय पदार्थ 32 प्रकार के। गाथा-347 14. |वादित्र | नाना प्रकार के। गाथा-348 15. आहार 116 प्रकार का। (16) व्यंजन-17 प्रकार के। (17) दाल-14 प्रकार की। गा.-351 18. | खाद्य पदार्थ | 108 प्रकार के। गाथा-351 19. स्वाद्य पदार्थ 363 प्रकार के। (21) रस-63 प्रकार के। गाथा-352 21. भवन स्वस्तिक एवं नन्द्यावर्त आदि 16 प्रकार के। गाथा-353 22. फूल मालाएँ | 16000 प्रकार की। गाथा-356 23. | भोग चक्रवर्ती के भोग से अनन्तगुणे। गाथा-361 24. भोग-साधन विक्रिया द्वारा अनेक प्रकार के शरीर बनाते हैं। गाथा-362 25. आभूषण पुरुष के 16 प्रकार के और स्त्री के 14 प्रकार के। गाथा-366 26. कला-गुण 64 कलाओं से युक्त। गाथा-389 27. |संहनन वज्रवृषभनाराच । गाथा-343
संस्थान समचतुरस्त्र शरीर । गाथा-343 29. मरण क दली घात रहित। 30. | मरण का कारण पुरुष का छींक और स्त्री के जंभाई। गाथा-381
-त्रिलोकसार गाथा-786-791 भी देखें
540 :: जैनधर्म परिचय
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