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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०. चमुत* हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण विदेह चार बड़े भागों में बँट जाता है। दो वनवेदियों, 3-3 विभंगा नदियों और चार-चार वक्षार पर्वतों से घिरा होने से प्रत्येक विभाग के आठ-आठ खंड हो जाते हैं । इस तरह सम्पूर्ण विदेह 32 भागों / खंडों में बँट गया है। ये 32 विदेह क्षेत्र या देश कहे जाते हैं, जिनकी 32 ही राजधानियाँ हैं ।7 ये राजधानियाँ उत्तर - दक्षिण में 12 योजन तथा पूर्व-पश्चिम में 9 योजन विस्तृत हैं, स्वर्णमय प्राकारों से वेष्टित हैं, अविनश्वर और अकृत्रिम हैं पूर्वापर विदेह क्षेत्र – 32 विदेह 1 Beg स कट भक्त औरवाड ति०प्र० खंड (०. पृष्ठ-पू स www. kobatirth.org RAJA Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन 32 विदेहों में प्रत्येक विदेह का विस्तार और रचना भरतक्षेत्र के समान है। बत्तीस विदेहों में 32 विजयार्ध और 32 वृषभ - गिरि हैं। दक्षिण के 16 विदेहों में गंगा-सिन्धु और विजयार्ध के कारण तथा उत्तर के 16 विदेहों में रक्ता - रक्तोदा और विजयार्ध के कारण प्रत्येक विदेह के छह-छह खंड हो गये हैं, जिनमें 5-5 म्लेच्छ खंड और एक - एक आर्यखंड है। इन 32 विदेहों में सदा अवसर्पिणी काल के चतुर्थ- काल-जैसी व्यवस्था बनी रहती है। यहाँ वर्षाकाल में 49 दिनों तक काले मेघों द्वारा तथा 84 दिनों तक धवल 528 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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