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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नरकों की जानकारी 4 कोस-1 योजन पृथ्वियों की बिलों नरकों की संख्या का तीनों का मोटाई । इन्द्रका श्रेणीबद्ध प्रकीर्णक | योग आयु उत्कृष्ट । जघन्य लेश्या | शरीर का उत्सेध मापक-24 अंगुल-1 हाथ 4 हाथ-1 धनुष । अवधि उत्पत्ति-मरण उत्पद्यमान | अगले क्षेत्र अन्तर जीव भव में |कितनी उँचाई तक उछलते है योजन कास क्र | पृथ्वियों के गुण-नाम और रोढिक नाम रत्नप्रभा (धम्मा ) शर्कराप्रभा (वंशा) बालुकाप्रभा (मेघा) पंकप्रभा (अंजना) 5. धूमप्रभा (अरिष्टा ) तमःप्रभा (मघवी) महातम:प्रभा (माघबी) योजन For Private And Personal Use Only 1.80.000 योजन 32,000 योजन 28,000 योजन 24,000 योजन 20,000 योजन 16.000 योजन 18,000 योजन 13 | 442012995567 | 30 लाख 1 | 10,000 कापोत ] 31.25 हाथ एक सागरोपम वर्ष 2684] 24973051 25 लाख ३ ] 1 कापोत 62.50 हाथ सागरोपम सागरोपम 14761 1498515| 15 लाख 7 | कापोत 125 हाथ सागरोपम | सागरोपम नील कोस 7 700 992931 10 लाख 10 7 नील । 250 हाथ 12.50 सागरोपम सागरोपम|| कोस 5 | 2600 2997350 3 लाख | 17 | 10 नील 125 धनुष सागरोपम सागरोपम कृष्ण 99932] 5 कम | 22 17 | कृष्ण 250 धनुष | 1.5 1 लाख सागरोपम सागरोपम कोस | केवल 51 331 22 | परम | 500 धनुष 1 सागरोपम सागरोपम | कृष्ण कोस 49 | 9604] 839034784 लाख असंज्ञी जीवा तीर्थकर भी याजन हो सकते हैं सरीसृप तीर्थंकर भी योजन हो सकते हैं पक्षी तीर्थंकर भी हो सकते हैं सर्पादि चरमशरीरी | हो सकते हैं 627 योजन सिंह संयत महाव्रती 125 योजन हो सकते हैं देशसंयत हो । 250 योजन सकते हैं सम्यक्त्वधारी] 500 योजन हो सकते हैं www.kobatirth.org कोस 601 स्त्रा योग रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग हैं--1. खरभाग, 2. पंकभाग, 3. अब्बहुलभाग। खरभाग 16,000 योजन, पंकभाग 84,000 योजन तथा अब्बहुलभाग 80,000 योजन मोटा है। पंकभाग में असुरकुमारों के भवन और राक्षसों के आवास हैं। शेष भवनवासी और व्यन्तर खरभाग में हैं। अब्बहुलभाग और नीचे की सभी भूमियों में नरक हैं। भूगोल :: 517 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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