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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अर्बुद न्यर्बुद खर्व महाखर्व पद्म महापद्म छोणी महाछोणी शंख महाशंख क्षित्या महाक्षित्या क्षोभ महाक्षोभ 1023 सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को विषयानुसार विभाजन के क्रम में 4 अनुयोगों में विभाजित किया जाता है 25 7010 1011 498 :: जैनधर्म परिचय 7012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 www. kobatirth.org 1022 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. प्रथमानुयोग 2. करणानुयोग 3. चरणानुयोग 4. द्रव्यानुयोग गणित का विषय प्रमुखतः करणानुयोग में पाया जाता है, किन्तु शेष 3 अनुयोगों में भी प्रसंगवश यत्र-तत्र गणितीय विषय आये हैं । श्वेताम्बर - परम्परा के अनुयोगविभाजन में गणितानुयोग एक स्वतन्त्र अनुयोग है । अन्य तीन अनुयोग हैं- धर्मकथानुयोग, -करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग । चरण तिलोयपण्णत्ती, तिलोयसार आदि करणानुयोग के ग्रन्थों में कालमान, क्षेत्रमान एवं द्रव्यमान की अत्यन्त विस्तृत सूचियाँ दी गयी हैं । इन सूचियों में यत्र-तत्र किंचित् मतभेद भी हैं, तथापि ये सूचियाँ जैनाचार्यों की सूक्ष्म दृष्टि एवं विशाल संख्याओं में अभिरुचि व्यक्त करती हैं। कालमान-करणानुयोग के प्राचीन ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ती (त्रिलोक प्रज्ञप्ति) में आचार्य यतिवृषभ ने निम्न सूची दी है, जो थोड़े-बहुत परिवर्तनों सहित जैन परम्परा के अन्य ग्रन्थों जंबूद्वीव- पणत्ति - संगहो, तिलोयसार, हरिवंशपुराण, राजवार्तिक आदि में भी मिलती है, किन्तु जैनेतरर- परम्परा में उपलब्ध नहीं है। जैन परम्परानुसार काल की For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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