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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक जग-श्रेणी सदृश्य आख्यायित हआ है। लोक की ऊँचाई दो जग-श्रेणी, एक जगश्रेणी अधोलोक तथा एक जग-श्रेणी ऊर्ध्वलोक की ऊँचाई तथा मध्यलोक की चौडाई भी एक जग-श्रेणी निरूपित की गयी है। राजू के सदृश ही योजन भी एक मापन इकाई है, जो रेखीय दूरी के मापन के निमित है एवं अंगुल्य तथा पल्य इसके खण्ड हैं। योजन का उपयोग भौगोलिक तथा खगोलीय मापन हेतु किया गया है। एक पुद्गल का परमाणु आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक गमन करे; वह काल-खण्ड समय कहलाता है। जघन्य-युक्त असंख्यात समय को एक आवली कहते हैं। 24 मिनट की एक-एक घड़ी होती है एवं दो घड़ी का एक मुहूर्त होता है। 60 घड़ी का एक अहोरात्र बनता है और 15 दिनों का एक पक्ष। दो पक्ष मिलकर एक मास बनाते हैं तथा दो मास की एक ऋतु होती है। 6 मास का एक अयन होता है और दो अयनों का एक वर्ष होता है। काल-सवर्ण का उपयोग भी महावीराचार्य ने किया है एवं इसके 6 रूपों- गुणा, भाग, वर्ग, घन, घन-माला, योग को समाहित किया गया है। यावत्-तावत् क्रियाविधि का उपयोग सामान्य समीकरणों को पूरा करने हेतु उसी प्रकार से किया गया है, जिस प्रकार आधुनिक गणित में 'जहाँ तक हो सके या सीमा तक' किया जाता है। पल्य की अवधारणा आंगुल्य, व्यवहार, उद्धर, अद्ध को समाहित कर तात्कालिक सेट का निर्माण करती है, जो अधिकतर बेलनाकार आकृति के गणितीय प्रश्नों का समाधान करती है। इनके अतिरिक्त अर्धछेद, वर्गशलाका, वर्गित, संवर्गित, स्थान, विकल्प, अवैलिक, का जैन शास्त्रकारों द्वारा प्रयोग, आधुनिक गणितीय अवधारणाओं के साथ समतुल्यता उपस्थित करता है। साथ ही अंकगणित एवं ज्यामितीय विज्ञान में आदि, मुख, वदन, प्रभाव का उपयोग प्रगत्यात्मक अनुक्रम के लिए, दया, अन्तर, विशेष, अन्तर-स्पष्टीकरण हेतु एवं सामान्य अनुपात हेतु गुनकर, योग हेतु संकलित धन, योग के वर्गीकरण हेतु आदि, मध्य और उत्तर धन आदि पारिभाषिक शब्दों का उपयोग किया गया है। 9वीं सदी के उत्तरार्ध में श्रीधर ने जो सम्भवतया बंगाल के थे, नाना प्रकार के व्यावहारिक प्रश्नों जैसे अनुपात, विनिमय, साधारण ब्याज, मिश्रण, क्रय और विक्रय, गति की दर, वेतन और हौज भरना इत्यादि के लिए गणितीय सूत्र प्रदान किये। कुछ उदाहरणों में तो उनके हल काफी जटिल थे। उनका पाटीगणित एक विकसित गणितीय कृति के रूप में स्वीकृत है। इस पुस्तक के कुछ खण्डों में अंकगणितीय और ज्यामितीय श्रेणियों का वर्णन है, जिसमें भिन्नात्मक संख्याओं या पदों की श्रेणियाँ भी शामिल हैं तथा कुछ सीमित श्रेणियों के योग के सूत्र भी हैं। गणितीय अनुसंधान की यह श्रृंखला 10वीं सदी में बनारस के विजयनन्दी तक चली आयी, जिनकी कृति 'करणतिलक' का अलबरूनी ने अरबी में अनुवाद किया था। महाराष्ट्र के श्रीपति भी इस सदी के धर्म और विज्ञान :: 487 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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