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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैवल्य (पूर्णतः मुक्त एवं पवित्र) की स्थिति में पहुँचाना। इस कैवल्य की अवस्था में कर्म के बन्धन टूट जाते हैं और आत्मा अपने को प्रकृति के बन्धनों से मुक्त करने में समर्थ हो जाता है। इसी अवस्था को मोक्ष भी कहा जाता है । मोक्ष की इस अवस्था में समस्त दुःख, भय, अभाव एवं कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आत्मा स्थायी और अटूट परमानन्द की अवस्था में पहुँच जाता है। मोक्ष के सम्बन्ध में जैनधर्म की यह मान्यता वैदिक मान्यता से भिन्न है । वेदान्त के अनुसार मोक्ष की अवस्था में आत्मा का ब्रह्म के साथ पूर्णतः मिलन हो जाता है और आत्मा का कोई पृथक् अस्तित्व नहीं बचता। जबकि जैनधर्म एवं दर्शन के अनुसार कैवल्य या मोक्ष की अवस्था में भी आत्मा का अपना निजी अस्तित्व एवं स्वरूप बना रहता है। जैनदर्शन के अनुसार आत्मा स्वभावतः निर्मल और प्रज्ञ है। प्रकृति के सम्पर्क के कारण ही यह आत्मा अज्ञानता, माया और कर्म के बन्धन में पड़ जाता है। कैवल्य की प्राप्ति के उपाय हैं - 1. सम्यक् दर्शन (तीर्थंकरों के बताए तत्त्वों में पूर्ण श्रद्धा), 2. सम्यक् ज्ञान (शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान) और 3. सम्यक् चारित्र (पूर्ण नैतिक आचरण) । जैनधर्म बिना किसी बाहरी सहायता के, स्वयं अपने पुरुषार्थ द्वारा ही आत्म-कल्याण प्राप्त करने का मार्ग बतलाता है। जैनधर्म एवं दर्शन ने भारतीय धर्म एवं दर्शन को भी कई प्रकार से प्रभावित किया । आचार - शास्त्र में नैतिक आचरण, विशेषकर अहिंसा को इससे नया बल मिला। जैनदर्शन 'आस्रव' के सिद्धान्त में विश्वास करता है, जिसका अर्थ यह है कि कर्म के संस्कार क्षण-क्षण प्रवाहित हो रहे हैं । कर्म के इन संस्कारों का प्रभाव जीव पर क्षण-क्षण पड़ रहा होता है । संस्कारों के इस प्रभाव से बचने का यही उपाय है कि मनुष्य चित्त वृत्तियों का निरोध ( रोकथाम) करे, मन को विवेक के द्वारा काबू में लाए। योग की समाधि का अवलम्बन और तपश्चर्या में लीन रहना भी जैन दर्शन की मान्यता है I I आत्मज्ञान-प्राप्ति का मार्ग कैवल्य - प्राप्ति की साधना के लिए जैन धर्म एवं दर्शन में, सात सोपानों (सीढ़ियों) का उल्लेख किया गया है। ये सात सोपान ही जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष नामक सात तत्त्व हैं। जीव आत्मा है। अजीब वह ठोस द्रव्य (शरीर) है, जिसमें आत्मा निवास करती है । जीवन और अजीव का मिलन ही संसार है । अतएव मोक्ष - साधना का मार्ग यह है कि जीव (आत्मा) को अजीव (पदार्थ) से पृथक् कर दिया जाए। आत्मा और परमात्मा के बीच की माया की दीवार को गिराकर कैवल्य या मोक्ष की स्थिति प्राप्त की जा सकती है, किन्तु जीव- अजीव से बँधा कैसे है ?... इसका उत्तर आस्रव है । विभिन्न कर्मों के करने से जो संस्कार प्रकट होते हैं, उसी के कारण जीव अजीव से बँध जाता है । अतएव इस बन्धन को नष्ट करने का उपाय यह है कि जीव कर्मों से क्षरित ( उत्पन्न होने वाले 478 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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