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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का श्रेय दिया गया है। ___जम्बूस्वामी के बाद दिगम्बर परम्परा के अनुसार विष्णुकुमार, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ने क्रमशः संघ का नेतृत्व किया। ये पाँचों श्रुतकेवली थे अर्थात् उन्हें महावीर द्वारा उपदिष्ट सम्पूर्ण श्रुत का यथावत् ज्ञान था। भद्रबाहु दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में अन्तिम श्रुतकेवली के रूप में मान्य हैं, जबकि उनसे पहले चार श्रुतकेवलियों के नाम श्वेताम्बर परम्परा में भिन्न हैं यथा-प्रभव, स्वयंभव, यशोभद्र और सम्भूत विजय। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की समाधि दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर संवत् 162 (ई.पू. 365) में तथा श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर संवत् 178 (ई.पू. 349) में मानी जाती है। भद्रबाहु के बाद महावीर द्वारा उपदेशित अंगपूर्वो का ज्ञान धीरे-धीरे विच्छिन्न होने लगा। भगवान् महावीर से प्रभावित तत्कालीन सत्ताधीशों में वज्जि संघ के अध्यक्ष राजा चेटक तथा उनका परिवार और मगध के नरेश श्रेणिक-बिम्बिसार तथा उनके पुत्र मन्त्रीश्वर अभय और उत्तराधिकारी कुणिक-अजातशत्रु का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है। श्रेणिक-बिम्बिसार ने अपने लगभग 50 वर्ष के सुदीर्घ राज्यकाल में मगध को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में संगठित कर लिया था और मगध साम्राज्य की सुदृढ़ नींव जमा दी थी। कहा जाता है कि मगध की राजधानी राजगृह में महावीर का समवसरण 200 बार आया था और इन समवसरणों में श्रेणिक ने गौतम गणधर के माध्यम से भगवान् से एक-एक करके 60,000 प्रश्न किये थे और उन प्रश्नों के उत्तरों के आधार पर ही विपुल जैन-साहित्य की रचना हुई। ___ उवासगदसाओ सुत्त (उपासकदशा सूत्र) में महावीर के दश सर्वश्रेष्ठ साक्षात् उपासकों एवं परम भक्तों का वर्णन प्राप्त होता है। ये सभी सद्गृहस्थ थे और गृहस्थावस्था में रहते हुए ही धर्म का पालन करते थे। उनके नाम हैं-आणंद, कामदेव, चुलणीपिता, सुरादेव, चुल्लसय, कुण्डकोलिय, सद्दालपुत्त, महासतय, नंदिणीपिया और लेइयापिता। इनमें से सद्दालपुत्त जाति से शूद्र और कर्म से कुम्भकार था। अन्य सभी श्रावक श्रेष्ठि-वर्ग से थे। चार अन्य श्रेष्ठि-पुत्रों का भी उनके परम-भक्त के रूप में विशेष उल्लेख है-राजगृह के सुदर्शन सेठ, शालिभद्र, धन्ना और जम्बूकुमार। ये जम्बूकुमार ही अन्तिम केवली थे। इन भक्तों के विषय में जो कथाएँ जैन साहित्य में मिलती हैं, उनका उद्देश्य गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं को त्याग एवं संयम के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए प्रेरित करना रहा प्रतीत होता है। श्रुतज्ञान दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नायों में यह सामान्य मान्यता है कि महावीर को ऋजुकूला नदी के तट पर स्थित जृम्भिक ग्राम में शाल वृक्ष के नीचे ध्यान करते इतिहास के प्रति जैन दृष्टि :: 41 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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