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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशसम्मतिनिक्षेप, नामरूपप्रतीतिः। संभावनोपमाने च, व्यवहारो भाव इत्यपि ॥ 28 ॥ दशधर्म स्कन्ध, पृ. 94 अर्थ-सत्य दस प्रकार का है- जनपद सत्य, सम्मति सत्य, निक्षेप सत्य, नाम सत्य, रूप सत्य, प्रतीति सत्य, सम्भावना सत्य, उपमान सत्य, व्यवहार सत्य, भाव सत्य। भाषा के चार भेद असत्य सत्यगं किंचित्, किंचित् सत्यमसत्यगं। सत्यंसत्यं पुनः किंचित्, किंचित् सत्यासत्यमेवा ॥ 44 ॥ दशधर्म स्कन्ध, पृ. 98 अर्थ- कोई वचन असत्य-सत्य कोई सत्य-असत्य कोई सत्य-सत्य, कोई असत्यअसत्य इस प्रकार भाषा के चार भेद होते हैं। 1. जो असत्य होकर भी सत्य है जैसे भात पक रहा है, वस्त्र बुना जा रहा है। 2. जो सत्य होकर भी असत्य है जैस– पन्द्रह दिन में वह वस्तु मैं तुम्हें दे दूंगा। ऐसा विश्वास मिलाकर एक माह या एक वर्ष में देना, दे दिया इसलिए सत्य है किन्तु जब कहा था तब नहीं दिया इसलिए असत्य है। 3. जो वस्तु जैसी है जिस देश, काल, आकार प्रमाण में मानी गयी है, उसी रूप में स्वीकार करना सत्य-सत्य कहलाता है। ____4. जो वस्तु अपने पास नहीं है, वह कल मैं तुम्हें दूँगा ऐसा कहना असत्य-असत्य दश प्रकार की खोटी भाषा कर्कशा परुषा कटवी निष्ठुरा परकोपिनी। छेदंकरा मध्यकृशाऽतिमानिन्यनयंकरा।। भूतहिंसाकरी वेति दुर्भाषा दशधा त्यजत् । भूतहिंसामितमसन्दिग्धं, स्याद् भाषासमिति वदन् ॥ 48॥ दशधर्म स्कन्ध, पृ. 98 अर्थ- कठोर, रूक्ष, कड़वी, निर्दयी, दूसरों को क्रोध कराने वाली, गुणों का नाश करने वाली, हृदय में ठेस पहुँचाने वाली, अभिमान युक्त, खोटे मार्ग पर ले जाने वाली, प्राणियों की हिंसा कारक इन दस प्रकार की भाषा का त्याग करना चाहिए, क्योंकि भाषा समिति का धारक हितकारी थोडा और सन्देह रहित बोलता है। 1. कर्कशा-जैसे- तुम मूर्ख हो, बैल हो, कुछ नहीं जानते हो इत्यादि बोलना। 2. परुषा–मर्म विदारक, जैसे-तुम अनेक दोषों से दुष्ट हो इत्यादि बोलना। 3. कटुका- भय उत्पादक, जैसे तुम जाति हीन हो, निर्धन हो इत्यादि बोलना। 416 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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