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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org पर्युषण पर्व Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रो. विजयकुमार जैन जैनधर्म आत्मवादी धर्म है, उसके सारे प्रयत्न मनुष्य को लोककल्याण और आत्मोत्थान की ओर ले जानेवाले हैं। आत्मशुद्धि जैन पर्वों की प्रमुख विशेषता है। इसके लिए क्रोध, मान, माया तथा लोभ रूप कषायों को हटाकर सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान और आचरण को जीवन में उतारा जाता है | अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह के द्वारा अपनी शुद्धि की जाती है। वाणी में स्याद्वाद, विचारों में अनेकान्तवाद और आचार में अहिंसा की प्रतिष्ठापना की जाती है। आत्मसाधना करते समय उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव आदि सद्गुणों के विकास तथा क्रोधादि विकारों के शमन हेतु व्रत, उपवास, एकासन, दर्शन, पूजन, भक्ति, स्वाध्याय, उपदेश - श्रवण आदि प्रधान कार्य किये जाते हैं । इन्हीं के द्वारा आत्मा के रागद्वेष आदि विकारों को शान्त कर उत्तरोत्तर समता की ही अभिवृद्धि की जाती है । पर्यूषण पर्व या दशलक्षण पर्व शाश्वत पर्व माना जाता है । पर्यूषण शब्द अपभ्रंश है जिसे पज्जूषण कहा है। इसके प्राकृत रूप पज्जूसन, पज्जीसवण, पज्जीसमन आदि हैं, और संस्कृत रूप पर्युषन, पर्युषण, पर्युपवास, पर्युपासन आदि हैं। पर्यूषन (परि + उषन् ) का अर्थ पर-भाव से विरत होकर स्वभाव में रमण करना है। पर्युपशमन (परि + उपशमन) का अर्थ वर्षायोग में एक स्थान में तिष्ठते हुए अपनी आत्मा में ही निवास करना - लीन रहना है और पर्युपासना (परि+उपासना) का अर्थ उत्कृष्ट उपासना अर्थात् आत्मोपासना आत्माराधन करना । इस प्रकार सब ही अर्थों की दृष्टि से पर्यूषण आत्मलोचन, आत्मनिरीक्षण, आत्म जाग्रति एवं आत्मोपलब्धि का महान पर्व है । 'परि समन्तात् उषणं निवासः' अर्थात् व्यापकपने से सर्वत्र निवास करना, तीन लोक में व्याप्त आत्मशक्ति का प्रसार करना, प्राणीमात्र के साथ सहानुभूति से समभाव रखना तथा क्रोध, मान, माया, और लोभ आदि के विचार का उपशमनकर निज स्वभाव में स्थिर होना । इस पर्व को पर्यूषमन भी कहा ता है जिसका अर्थ है मानसिक विचारों को पूर्णतया शान्त करना। पर्युषण को संवत्सरी भी कहते हैं। संवत्सर का अर्थ वर्ष है । संवत्सर शब्द से पर्व अर्थ में अण् प्रत्यय जोड़कर संवत्सर की व्युत्पत्ति हुई। वर्ष के अनन्तर सम्पन्न होनेवाले पर्व को सांवत्सर कहते हैं। इसी के आधार पर इसे संवत्सरी कहते हैं । श्वेताम्बर परम्परा में भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन संवत्सरी मनाते हैं तथा उसके आठ दिन पहले पर्यूषण पर्व मनाते हैं । दिगम्बर परम्परा 410 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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